Tuesday, January 2, 2024

पतंजलि योग में प्रवृत्ति से संप्रज्ञात समाधि की यात्रा


महर्षि पतंजलि योग दर्शन में सात्त्विक चित्त प्रवृत्ति से संप्रज्ञात समाधि तक की योग - यात्रा 

संदर्भ >  1.पतंजलि समाधिपाद सूत्र - 35 

             2.विभूतिपाद सूत्र - 25 

             3. विभूतिपाद सूत्र - 3

1 - समाधिपाद सूत्र - 35

विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनस: स्थिति निबंधिनी

सूत्र भावार्थ 

“ अथवा बिषयाकार मन में जो विषय - प्रवृत्ति उत्पन्न होती है वह मन को उस बिषय से बाध कर रखती है “ 

यहां सूत्र में  वा ( अथवा ) शब्द इसलिए प्रयोग  किया गया है क्योंकि इस सूत्र के पहले समाधिपाद सूत्र 12 - 19 , 23 - 29 तथा सूत्र 34 - 39 में  चित्त वृत्ति निरोध के लिए कुछ उपाय बताए गए हैं । समाधिपाद सूत्र 35 का  संबंध सात्त्विक विषय पर चित्त एकाग्रता साधने के अभ्यास से है । चित्त वृत्ति निरोध के लिए निम्न उपाय बताए गए हैं …

ईश्वर प्रणिधान ,बाह्य कुंभक , कोई सात्त्विक आलंबन , स्थिर ज्योति , बीत राग, स्वप्न और निद्रा । 

ऊपर बताए गये आलंबनों में से किसी एक आलंबन पर चित्त को एकाग्र करने का अभ्यास करने से अंतः करण में वैराग्य की ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है । जब वैराग्य की ऊर्जा सघन हो जाती है तब चित्त में राजस एवं तामस गुणों की वृत्तियों का आना - जाना बंद हो जाता है लेकिन सात्त्विक गुण की वृत्तियों का आना - जाना बना रहता है। इस अवस्था की पतंजलि चित्त एकाग्रता कहते हैं । 

3 - विभूतिपाद सूत्र - 03 

यहां संप्रज्ञात समाधि की परिभाषा देखें ….

"तत् एव अर्थ मात्र निर्भासं स्वरुपशून्यम्  इव समाधि "

पतंजलि अष्टांगयोग के निम्न 08 अंग(तत्त्व ) हैं ..

ऊपर व्यक्त 08 अष्टांगयोग अंगों की साधना में  जब

ध्यान सिद्ध होता है तब ध्यान का आलंबन नाम मात्र रह जाता है और उसका स्वरूप शून्य सा हो जाता है । इस अवस्था में अर्थ मात्र आलंबन के साथ योगी का ऐसा एकत्व स्थापित हो जाता है कि वह देश - काल से अप्रभावित रहते हुए निद्रा जैसी स्थिति में आ जाता है जिसे संप्रज्ञात समाधि कहते हैं । यम से प्राणायाम तक के योगाभ्यास सिद्धि से चित्त का झुकाव समाधि की ओर हो जाता है और इस चित्त के झुकाव को प्रवृत्ति कहते हैं । इस प्रकार चित्त की सात्त्विक आलंबन के प्रति उपजी प्रवृत्ति से अंतःकरण विवेक ज्ञान से प्रकाशित हो जाता है , जैसा निम्न पतंजलि सूत्र में बताया जा रहा है …

2 - विभूतिपाद सूत्र - 25

प्रवृत्त्यालोक न्यायसात् 

सूक्ष्मव्यवहितविप्रकृष्ट ज्ञानम् 

प्रवृत्ति + आलोक + न्यायसात् 

सूक्ष्म + व्यवहित + विकृष्ट+ज्ञानम् 

प्रवृत्ति से ज्ञान - प्रकाश आलोकित होता है जिसे विवेक ज्ञान कहते हैं । ज्ञान प्रकाश के माध्यम से सूक्ष्म एवं परदे के पीछे स्थित वस्तु को देखा जा सकता है “

 अर्थात प्रवृत्ति से उपजे विवेक ज्ञान के माध्यम से सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु जैसे बैक्टीरिया आदि को देखा जा सकता है और सुदूर वस्तु को भी देखा जा सकता है । इस प्रकार यह कह सकते हैं कि जिस सूक्ष्म वस्तु या सुदूर स्थित वस्तु को देखना हो उस पर धारणा , ध्यान और समाधि की सिद्धि प्राप्त करने से संयम की सिद्धि मिलती है । संयम सिद्धि से चित्त के अंदर उस वस्तु के प्रति प्रवृत्ति उत्पन्न हो जाती है। प्रवृत्ति से विवेक ज्ञान आलोकित होता है और नेत्रों को वह ऊर्जा मिल जाती है जिससे आंखें सूक्ष्म एवं सुदूर स्थित वस्तु को देखने में सक्षम हो जाती हैं । गीता में यह सिद्धि व्यास जी द्वारा संजय को मिली थी और प्रभु श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को उनके विश्वरूपम् को देखने के लिए मिली थी ।

# अगले अंक में संयम सिद्धि  सिद्धियों की प्राप्ति ,असंप्रज्ञात समाधि और धर्ममेघ समाधि से  कैवल्य प्राप्ति की यात्रा करेंगे 

~~ ॐ ~~


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