Tuesday, November 15, 2011

वासना से प्यार की यात्रा

कौन किसका कितना और कबतक अपना है ?

प्यार और वासना

सुरक्षा और भय

यह दो कड़ियाँ ऎसी हैं जिनका सीधे सभीं जीवों के जीवन से गहरा सम्बन्ध है / मनुष्य मात्र एक ऐसा जीव है जो द्वैत्य के माध्यम से अद्वैत्य की हवा को पहचान सकता है और अन्य जीव गुणों के प्रभाव से परे कभीं नहीं पहुच सकते ; उनका जीवन स्टीरियो टाइप है अर्थात जन्म , भोजन , काम , सुरक्षा एवं मृत्यु इनके मध्य सीधी रेखा में उनका जीवन आगे चलता रहता है / मनुष्य के जीवन के दो केंद्र हैं [ bipolar life ] एक केन्द्र है राम और दूसरा केंद्र है काम ; राम केंद्र का मार्ग है प्यार और काम का मार्ग है वासना / मनुष्य वासना से प्यार में पहुँच कर अपने को धन्य समझता है और प्रभु की कुशबू ले कर समाधि में पहुँच कर परम धाम को देखनें लगता है और वासना में उलझा मनुष्य वासना के फल स्वरुप पैदा होता है , वासना की खोज में उसका जीवन गुजर जाता है और वासना की अतृप्त में उसे न चाहते हुए भी शरीर छोड़ना पड़ता है /

मनुष्य प्यार के लिए परिवार की रचना करता है , पत्नी - बच्चों में उसे वासना में निर्विकार प्यार की झलक मिलती रहती है और वह आगे चलता चला जाता है लेकिन वह होती तो वासना ही है , वह वासना के सम्मोहन में आगे चलता रहता है लेकिन जिस दिन बुद्ध – महाबीर जैसे वाशना में होश उठता है उस दिन वह वासना को धन्यबाद करके चल पड़ता है सत् पथ पर जहां जो होता है वह सत् ही होता है / मनुष्य सुरक्षा के लिए महल बनवाता है , धन इकट्ठा करता है लेकिन क्या उसे कभी यह मह्शूश हो पाता है कि अब वह पूर्ण सुरक्षित है ? जी नहीं / साधनों से सुरक्षित कैसे हो सकता है ? साधन जैसे - जैसे बढते जाते हैं मनुष्य और अधिक अशुरक्षित महशूश करनें लगता है / पूर्ण सुरक्षा तब महशूश होती जय जब मन पूर्ण शांत हो और उस परम पर टिका हो जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का सुरक्षा चक्र है / सब कहनें की बाते हैं , अमुक मेरा बेटा है , अमुक मेरी पत्नी है , अमुक मेरा पिता है अमुक मेरी मां है कोई किसी का नहीं सब अपनें - अपने स्वार्थ में डूबे हैं लेकिन इनसे नफरत करना अपने को नर्क में डालना है , ये सभीं सीढियां है सबको एक - एक करके समझते रहो और अंत में जहां तुम्हारी यह होश ले जायेगी वही परम प्रभु पा आयाम होगा जहां परमानंद बसता है //

काम से राम की यात्रा मनुष्य के जीवन की यात्रा है

काम से काम में स्थिर अन्य जीवों के जीवन की गोलाकार यात्रा है

मनुष्य कभी हसता है तो कभी रोता है जो बाहर से स्पष्ट दिखता है

अन्य जीव जब रोते हैं या हस्ते हैं तब मनुष्य को पता भी नहीं चल पाता

मनुष्य नशे में रहता है उसे दूसरों का रोना देख हस्त है और हसता देख कर क्रोध करता है लेकिन यह पूर्ण भोगी मनुष्य के लक्षण हैं जो इनको समझा वह गया उस पार


======ओम्========


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