पुरुष का ज्यादा समय घर से बाहर गुजरता था
और
स्त्री का ज्यादा वक्त घर में ही गुजरता था
लेकिन
समय बदला , समय से साथ – साथ हवा का रुख बदला
और इस बदलाव में सबकुछ तो बदल गया //
पहले हवा पूर्व से पश्चिम की ओर बहती थी और अब पश्चिम से पूर्व की ओर चल पडी है / इस हवा के प्रभाव में हम सबका खान – पान , रहन – सहन , उठना - बैठना , पहनावा , भाषा और चाल सब कुछ तो बदल रहा है और है कोई जरुर कहीं न कहीं जो इस बदलाव को गहराई से निहार रहा है /
आज से बीस साल पहले कोई सोच भी न सकता रहा होगा कि स्त्रियों के सैलून होते होंगे और आज खोजना पड़ता है आदमी को अपनें सैलून को ; जहाँ देखो वहीं स्त्रियों के सैलून हैं , कहीं कहीं गरीब बस्तियों में एकाध सड़े - गले देखनें में ऐसे दिखते जैसे कोई ऐतिहासिक जगह हों , एकाध पुरुषों के सैलून भी दिख जाते हैं /
आज दूर से किसी बाइक चालक को देख कर यह कहना की यह चालक स्त्री है या पुरुष कुछ कठिन होगा , सब एक से दिखते हैं / आदमी का अधिकाँश समय घर से बाहर दो कारणों से गुजरता था ; एक घर को चलाने के साधनों का बंदोबस्त करना उनकी प्राथमिकता होती थी और इस कार्य में औरों के सहयोग की भी जरुरत होती थी, यही जरुरत समाज को जोड़ कर रखती थी और दूसरा करण था , पुरुष घर की परेशानियों से लड़ा हुआ अपने को अब और चलाना जब मुश्किल समझनें लगता था तब घर से बाहर निकल पड़ता था और ऐसे की तलाश में घूमता था जो उसको अपनी न सुना कर उसकी सुन सके लेकिन यह समीकरण किसी - किसी का सही बैठता था ज्यादातर लोग बाहर जा कर अपनें बोझ को और बढ़ा कर वापिस आते थे और उनका नज़ला घर के जिस सदस्य पर अधीन गिरता था वह होती थी उनकी पत्नीजी /
कहते हैं न --- जाति रहे हरि भजन को , ओटन लगे कपास , गए तो थे घर से बाहर कुछ हलके होनें लेकिन अपना वजन और अधिक बढा कर वापिस आगये / क्या करोगे गीता पढ़ के , क्या करोगे रामायण पढ़ के , यदि पढ़ना ही चाहते हो तो -------
हरपल अपनें को पढ़ो
अपनें को देखो
====== ओम् ======
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