- एक परमात्मा ......
- अनेक देवता ........
- एक माया ............
- अनेक जीव .........
- दो प्रकृतियाँ ........
- ऊपर आकाश .....
- नीचे एक काल्पनिक संसार , पाताल .....
- सप्त सिंधु ......
- सप्त ऋषि .....
- सप्त दिन [ सप्ताह ] .....
- नौ ग्रह .......
- देव - दानव .....
- सच - झूठ ......
- अपना - पराया .....
- सास - ससुर , पति - पत्नी , पुत्र - पुत्री , समाज
- समाज की जरूरतें और स्वयं की चाह
- स्वर्ग - नर्क का भय
हमारे रहनें के आयाम तो अनेक हैं , हम उनमे कैसे रहते हैं , यह हमारे जीवन की दिशा को तय करता है
जीवन वह है जो न अपनें लिए जीया जाए , न पराये के लिए ,जीवन चाह रहित एक दरिया की धार जैसे बहते रहना चाहिए जहाँ किसी अवरोध की कोई फ़िक्र न रहे और धीरे - धीरे ऐसा जीवन जहाँ पहुँचता है उसी का नाम है.........
परम धाम
==== ओम् ======
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