लोग कहते हैं ------
मैनें अमुक पराये को अपना लिया है , क्या यह सत्य है ?
क्या पराये को अपनाया जा सकता है ?
क्या अपनों को पराया बनाया जा सकता है ?
अपनों को पराया बनाना ------
परायों को अपना बनाना ------
दोनों बातों में समान वजन है ; जो एक को कर लिया दूसरा उसके लिए कठिन नहीं
जो यह कहता है कि हमनें अमुक को अपना लिया लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ,
यह बात दिल की बात नहीं बाहर - बाहर की बात है ----
जो दिल से किसी को अपनाता है उसके पास मैं और तूं दो नहीं रहते , अपनानें के साथ ही मैं तूं में बिलीन हो जाता है , फिर कौन बचा रहता है जो यह कहे कि , उसको मैं अपना लिया था लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ?
अपनाना कोई कृत्य नहीं , यह एक घटना है जो स्वतः घटती , पता तक नहीं चल पाता और जब यह पता चलता है कि मैनें अपना लिया है उसी घडी उसमें अपनानें की ऊर्जा बदल जाती है / अपनाना एक प्रकार की साधना का फल है जिस पर कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं अहँकार की छाया तक नहीं पड़ती और जहाँ ऐसा आयाम हो वह स्थान तीर्थ होता है और वहाँ प्रभु को खोजा नहीं जाता , वहाँ सर्वत्र प्रभु ही प्रभु दिखता है /
आप न कुछ अपनानें की कोशिश करे न त्यागानें की , आप मात्रा उसे देखें जो आप के साथ घटित हो रहा हो और ----
आप का जब यह अभ्यास सघन होगा तब आप कुछ और हो गए होंगे , मेरे जैसे बैठ कर ब्लॉग नहीं लिखेंगे , ब्लॉग में स्वय को घुला दिए होंगे जैसे गंगा गंगा सागर में स्वयं को घुला कर मुक्त हो जाती है /
==== ओम् ======
मैनें अमुक पराये को अपना लिया है , क्या यह सत्य है ?
क्या पराये को अपनाया जा सकता है ?
क्या अपनों को पराया बनाया जा सकता है ?
अपनों को पराया बनाना ------
परायों को अपना बनाना ------
दोनों बातों में समान वजन है ; जो एक को कर लिया दूसरा उसके लिए कठिन नहीं
जो यह कहता है कि हमनें अमुक को अपना लिया लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ,
यह बात दिल की बात नहीं बाहर - बाहर की बात है ----
जो दिल से किसी को अपनाता है उसके पास मैं और तूं दो नहीं रहते , अपनानें के साथ ही मैं तूं में बिलीन हो जाता है , फिर कौन बचा रहता है जो यह कहे कि , उसको मैं अपना लिया था लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ?
अपनाना कोई कृत्य नहीं , यह एक घटना है जो स्वतः घटती , पता तक नहीं चल पाता और जब यह पता चलता है कि मैनें अपना लिया है उसी घडी उसमें अपनानें की ऊर्जा बदल जाती है / अपनाना एक प्रकार की साधना का फल है जिस पर कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं अहँकार की छाया तक नहीं पड़ती और जहाँ ऐसा आयाम हो वह स्थान तीर्थ होता है और वहाँ प्रभु को खोजा नहीं जाता , वहाँ सर्वत्र प्रभु ही प्रभु दिखता है /
आप न कुछ अपनानें की कोशिश करे न त्यागानें की , आप मात्रा उसे देखें जो आप के साथ घटित हो रहा हो और ----
आप का जब यह अभ्यास सघन होगा तब आप कुछ और हो गए होंगे , मेरे जैसे बैठ कर ब्लॉग नहीं लिखेंगे , ब्लॉग में स्वय को घुला दिए होंगे जैसे गंगा गंगा सागर में स्वयं को घुला कर मुक्त हो जाती है /
==== ओम् ======
1 comment:
अपनों को पराया बनाना ------
परायों को अपना बनाना ------
दोनों बातों में समान वजन है ; जो एक को कर लिया दूसरा उसके लिए कठिन नहीं
जो यह कहता है कि हमनें अमुक को अपना लिया लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ,
यह बात दिल की बात नहीं बाहर - बाहर की बात है ----
जो दिल से किसी को अपनाता है उसके पास मैं और तूं दो नहीं रहते , अपनानें के साथ ही मैं तूं में बिलीन हो जाता है , फिर कौन बचा रहता है जो यह कहे कि , उसको मैं अपना लिया था लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ?
- प्रेरक कथन, आभार!
Post a Comment