Saturday, November 3, 2012

होश में या बेहोशी में ----

लोग कहते हैं ------
 मैनें अमुक पराये को अपना लिया है , क्या  यह सत्य है ?
क्या पराये  को अपनाया जा सकता है ?
क्या अपनों को पराया बनाया जा सकता है ?

अपनों को पराया बनाना ------
परायों को अपना बनाना ------
दोनों बातों में समान वजन है ; जो एक को कर लिया दूसरा उसके लिए कठिन नहीं
जो यह कहता है कि हमनें अमुक को अपना लिया लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ,
यह बात दिल की बात नहीं बाहर - बाहर की बात है ----
जो दिल से किसी  को अपनाता है उसके पास मैं और तूं दो नहीं रहते , अपनानें के साथ ही मैं तूं में बिलीन हो जाता है , फिर कौन बचा रहता है जो यह कहे कि , उसको मैं अपना लिया था लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ?
अपनाना कोई कृत्य नहीं , यह एक घटना है जो स्वतः घटती ,  पता तक नहीं चल पाता और जब यह पता चलता है कि  मैनें  अपना लिया है उसी घडी उसमें अपनानें  की ऊर्जा बदल जाती है / अपनाना एक प्रकार की साधना का फल है जिस पर कामना , क्रोध , लोभ , मोह , भय एवं अहँकार की छाया तक नहीं पड़ती और जहाँ ऐसा आयाम हो वह स्थान तीर्थ होता है और वहाँ प्रभु को खोजा नहीं जाता , वहाँ सर्वत्र प्रभु ही  प्रभु दिखता है /
आप न कुछ अपनानें की  कोशिश करे न त्यागानें की , आप मात्रा उसे देखें जो आप के  साथ घटित हो रहा हो और ----
आप का जब यह अभ्यास सघन होगा तब आप कुछ और हो गए होंगे , मेरे जैसे बैठ कर ब्लॉग नहीं लिखेंगे , ब्लॉग में स्वय को घुला दिए होंगे जैसे गंगा गंगा सागर में स्वयं को घुला कर मुक्त हो जाती है /
==== ओम् ======

1 comment:

Smart Indian said...

अपनों को पराया बनाना ------
परायों को अपना बनाना ------
दोनों बातों में समान वजन है ; जो एक को कर लिया दूसरा उसके लिए कठिन नहीं
जो यह कहता है कि हमनें अमुक को अपना लिया लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ,
यह बात दिल की बात नहीं बाहर - बाहर की बात है ----
जो दिल से किसी को अपनाता है उसके पास मैं और तूं दो नहीं रहते , अपनानें के साथ ही मैं तूं में बिलीन हो जाता है , फिर कौन बचा रहता है जो यह कहे कि , उसको मैं अपना लिया था लेकिन उसनें मुझे धोखा दिया ?

- प्रेरक कथन, आभार!