घर का नक्शा .....
घर ....
गाँव ....
घर - गाँव के लोग ....
शहर , शहर के लोग ....
देश , देश के लोग , देश के लोगों का रहन सहन ....
पढ़ाई और पढ़ाई का तरीका ....
रहन - सहन , खान - पान .....
रीति - रिवाज ....
तीज - त्यौहार मनानें के तरीके ....
सब कुछ बदल रहा है लेकिन इस बदलाव में जो ऊर्जा काम कर रही है क्या वह भी बदल रही है ?
आज का युग विज्ञान का युग है , विज्ञान अर्थात वह जिसका आधार गहरी सोच हो और गहरी सोच से जो निकलता है उसे कहते हैं विज्ञान / सोच की मूल है संदेह और संदेह में सत्य असत्य की तरह और असत्य सत्य की तरह दिख सकता है / विज्ञान के नियमों की उम्र बहुत लंबी नही , और लंबी हो भी कैसे सकती है क्योंकि वह जिसका जन्म संदेह से हो रहा हो उसकी उम्र लंबी कैसे हो सकती है ?
आज मंगल ग्रह के ऊपर वैज्ञानिकों की नजर टिकी हुयी है और उनको वहाँ जो भी दिख रहा है उसमें पानी दिख रहा है क्योंकि बिना पानी जीव का होना संभव नहीं और वैज्ञानिकों की पूरी उम्मीद है कि मंगल पर कभीं जीव रहा करते थे / वैज्ञानिक सपना देखता है और उसका जीवन उस सपनें को सत्य का रूप देनें में गुजर जाता है / आइन्स्टाइन , मैक्स प्लैंक , श्रोडिंगर एवं अन्य सभीं नोबल पुरष्कार विजेताओं के जीवन को देखिये , वे सभी जो स्वप्न देखा उसकी गणित बनाते - बनाते उनका जीवन गुजर गया और पूर्ण तनहाई में उनके जीवन का अंत हुआ /
एक हैं वैज्ञानिक जो दिन में भी स्वप्न देखते हैं और उनको पता नहीं चल पाता की कब दिन हुआ और कब रात आयी और दूसरे हैं उपनिषद के ऋषि जिनका केंद्र वह बेला होती है जहाँ न रात होती है और न दिन जिसे कहते है संध्या या अमृत बेला / एक ऋषि अमृत बेला में योगयुक्त स्थिति में जो देखता है उसकी गणित नहीं बनाता क्योंकि उसे अपनी अनुभूति पर कोई संदेह नही और वह अपनी अनुभूति को किसी और पर लादना भी नहीं चाहता , जो चाहे उसकी बात को मानें और जो न चाहे न मानें लेकिन वह स्वयं अपनी अलमस्ती में रहता है /
इस बदलाव में जो निराकार ऊर्जा काम कर रही है उसका नाम है परमात्मा ,ब्रह्म ,
महेश्वर , ईश्वर आदि - आदि /
रूपांतरण में उसे देखना जो रूपांतरण का मूल है , योग है ....
घर ....
गाँव ....
घर - गाँव के लोग ....
शहर , शहर के लोग ....
देश , देश के लोग , देश के लोगों का रहन सहन ....
पढ़ाई और पढ़ाई का तरीका ....
रहन - सहन , खान - पान .....
रीति - रिवाज ....
तीज - त्यौहार मनानें के तरीके ....
सब कुछ बदल रहा है लेकिन इस बदलाव में जो ऊर्जा काम कर रही है क्या वह भी बदल रही है ?
आज का युग विज्ञान का युग है , विज्ञान अर्थात वह जिसका आधार गहरी सोच हो और गहरी सोच से जो निकलता है उसे कहते हैं विज्ञान / सोच की मूल है संदेह और संदेह में सत्य असत्य की तरह और असत्य सत्य की तरह दिख सकता है / विज्ञान के नियमों की उम्र बहुत लंबी नही , और लंबी हो भी कैसे सकती है क्योंकि वह जिसका जन्म संदेह से हो रहा हो उसकी उम्र लंबी कैसे हो सकती है ?
आज मंगल ग्रह के ऊपर वैज्ञानिकों की नजर टिकी हुयी है और उनको वहाँ जो भी दिख रहा है उसमें पानी दिख रहा है क्योंकि बिना पानी जीव का होना संभव नहीं और वैज्ञानिकों की पूरी उम्मीद है कि मंगल पर कभीं जीव रहा करते थे / वैज्ञानिक सपना देखता है और उसका जीवन उस सपनें को सत्य का रूप देनें में गुजर जाता है / आइन्स्टाइन , मैक्स प्लैंक , श्रोडिंगर एवं अन्य सभीं नोबल पुरष्कार विजेताओं के जीवन को देखिये , वे सभी जो स्वप्न देखा उसकी गणित बनाते - बनाते उनका जीवन गुजर गया और पूर्ण तनहाई में उनके जीवन का अंत हुआ /
एक हैं वैज्ञानिक जो दिन में भी स्वप्न देखते हैं और उनको पता नहीं चल पाता की कब दिन हुआ और कब रात आयी और दूसरे हैं उपनिषद के ऋषि जिनका केंद्र वह बेला होती है जहाँ न रात होती है और न दिन जिसे कहते है संध्या या अमृत बेला / एक ऋषि अमृत बेला में योगयुक्त स्थिति में जो देखता है उसकी गणित नहीं बनाता क्योंकि उसे अपनी अनुभूति पर कोई संदेह नही और वह अपनी अनुभूति को किसी और पर लादना भी नहीं चाहता , जो चाहे उसकी बात को मानें और जो न चाहे न मानें लेकिन वह स्वयं अपनी अलमस्ती में रहता है /
- बदलाव में बदलाव की प्रक्रिया के माध्यम से उसे समझना जो सनातन है ....
- बदल रही साकार सूचनाओं में उसे देखना जो निराकार है .....
- बदलाव में उसे देखना जो साकार से इराकार में और निराकार से साकार में रूपांतरित हो रहा है ,,,,
- इस देखनें को कहते हैं ज्ञान ...
- ज्ञान प्रकृति और पुरुष [ अर्थात बदल रही सूचनाओं एवं उनके मूल ऊर्जा जिससे वे हैं] का बोध है ...
- प्रकृति बदलाव का नाम है ....
इस बदलाव में जो निराकार ऊर्जा काम कर रही है उसका नाम है परमात्मा ,ब्रह्म ,
महेश्वर , ईश्वर आदि - आदि /
रूपांतरण में उसे देखना जो रूपांतरण का मूल है , योग है ....
No comments:
Post a Comment