- जहाँ न दुःख हो और जहाँ न सुख हो , वहाँ क्या हो सकता है ?
- जहाँ न दिन हो न रात हो , वहाँ क्या हो सकता है ?
- जहाँ न अपना हो , न पराया हो , वहाँ कौन हो सकता है ?
- जहाँ न भोग हो , न योग हो , वहाँ क्या हो सकता है ?
- जहाँ न कुछ अच्छा हो न बुरा , वहाँ क्या हो सकता है ?
- वह जिसे न तन से , न मन से पकड़ा जा सके , वह कौन हो सकता है ?
- जिसे न गाया जा सके , न लिखा जा सके , वह कौन हो सकता है ?
जीवन प्रश्नों से भरा है , जबतक मन - बुद्धि में संदेह है , तबतक प्रश्न का होना भी संभव है
जिस घडी मन - बुद्धि संदेह रहित होते हैं उस घड़ी मन -बुद्धि प्रश्न रहित हो उठते हैं
और
- प्रश्न रहित मन - बुद्धि का आयाम प्रभु का आयाम होता है
- प्रभु निर्भाव मन - बुद्धि पटल पर प्रतिबिंबित होते हैं और उनकी अनुभूति चेतना को होती है
मनुष्य एक खोजी जीव है और सब में उसे जो मिलता है वह उसे और अतृप्त बना जाता है और अतृप्तता की तिब्रता हर पल ऊपर ही उठती जा रही है /
जो उसे पा लेता है , उस घडी तो शांत हो उठता है लेकिन ज्योंही उसके उसका सम्बन्ध टूटता है , पुनः वह ब्याकुल हो उठता है और यह क्रम तबतक चलता रहता है जबतक तन में प्राण हैं /
- जिसनें उसे मनमोहन नाम दिया होगा , वह उसके कितनें गहरे प्यार में रहा होगा ?
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