Saturday, October 12, 2013

पग - पग पर

पग - पग पर
01- किसी को देखो , देखनें से आप का मार्ग सुगम हो सकता है लेकिन इतना और ऐसे न देखो की वह आप के दुःख का कारण बन जाए । यहाँ सबके मार्ग अलग - अलग हैं ; आप जैसा वह नहीं और आप वैसे जैसा नहीं हो सकते , बश इतनी सी बात पकडे रहो । 2- पग - पग पर सोचते रहो कि क्या तुम्हारा अगला कदम उधर ही जा रहा है जिधर तुम्हें अंततः जाना ही है , यदि नहीं टी अब भी वक़्त है तुम अपनें अगले कदम की स्थिति जो तय कर सकते हो ।
3- जरा सोचना - जिसके स्पर्शसे यह जगत चेतन मय है उसे हम चेतनाके एक कण देनें की भी तो सोच नहीं रखते ।
4- जीवन भर हम मुट्ठी खोलते समय डरते हैं कि इसमें जो हमनें इकट्ठे किये हैं वह कहीं सरक न जाए पर अंत समयमें यह मुट्ठी स्वतः खुल जाती है और खाली होती है , देखनें वालों ! सोचना , कल आप की भी मुट्ठी स्वतः खुलनें वाली है , आप इस भ्रमित जीवनसे निकल कर यथार्थ जीवन को अपना सकते , अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा ।
5- अपनें माँ - पितासे नज़र छिपा कर अपना जोड़ा बनानेंका यह प्रयाश क्या आपको यह नहीं इशारा करता कि यह तुम्हारा कृत्य तुमको भी माँ / पिता बनानें जा रहा हैं ? जैसे तुम अपनें माँ / पिताको धोखा दे रहे हो आज से ठीक 15 साल बाद आप की भी औलाद आपको धोखा दे सकती है ।
6- जैसा बीज और धरती होगी उसकी फसल भी वैसी ही होती है , यदि अन्य बातें सामान्य हों तब । 7- यह संसार लेने - देने का एक परम निर्मित क्षेत्र है जहाँ हमसब लेन - देन कर रहे हैं लेकिन जरा
सोचना ,  हम उस परमको क्या दे रहे हैं जबकि हमसबके पास जो भी है वह उसीका दिया हुआ है ?
8- जरा रुकना ! क्या कर रहे हो ? आप इस फूलको क्यों तोड़ रहे हो ? यह बिचारा तो हम सबको खुशबूसे भरता रहता है और हम इसे मौत देते हैं , यह कैसा इन्साफ है ?
9 - फैला लो अपनी पंख जितना फैलाना चाहते हो लेकिन इतनी बात जरुर अपनीं स्मृतिमें बनाए रखना कि जब वह घडी आएगी तेरे पंख स्वतः बंद होजायेंगे।
10 - मंदिरमें जो पहुँच रहे हैं उनमें सुखी कौन हैं और दुखी कौन हैं साफ़ साफ़ नज़र आता है लेकिन कोई ऐसा नज़र नहीं आता जो न सुखी हो न दुखी - सम भावमें हो ।
~~ ॐ ~~

2 comments:

Unknown said...

बहुत बढिया पोस्ट ।

मेरी नई रचना :- मेरी चाहत

Darshan jangra said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा - रविवार - 13/10/2013 को किसानी को बलिदान करने की एक शासकीय साजिश.... - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः34 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra