Saturday, March 7, 2015

कतरन - 8

* मुझे 16 सालसे अधिक यह समझनें और महसूश करनें में लगे कि खूनके रिश्ते रेशमके धागे जैसे मजबूत और सूक्ष्म बंधन हैं जो ध्यानकी गहराई में उतरनें नहीं देते ।
* जब सोचता हूँ कि बुद्ध आधी रातको पत्नीके प्रसव वेदनाकी चीख सुन कर और नवजात पुत्रकी पहली आवाज सुनकर कैसे वैराज्ञ में उतरे होंगे ? तब मुझे कुछ - कुछ ऐसा लगनें लगता है कि उस समय वे अपनें जन्मकी स्मृति में पहुँच गए होंगे जहाँ एक जंगल में उनकी माँ प्रसव वेदना में चीख रहे होंगी और प्रसवके बाद शिशु रूपमें बुद्ध रो रहे होंगे ।बुद्ध बाद में आलय विज्ञानकी खोज की जिसे महावीर जाति स्मरण नाम दिया था ।यह विज्ञान एक ध्यानकी विधि है जिसमें अपनीं चेतनाको अपनें पिछले जन्मों तक के अनुभवों में पहुँचाया जाता है ।वर्तमान जीवनके अनुभव से गर्भके अनुभव तक और गर्भके अनुभवसे गर्भमें आनेंके अनुभव तक और इस प्रकार अपनें पिछले जन्मोंनके जीवनोंके अनुभवोंमें पहुँचना ही आलय विज्ञान है ।बुद्ध का बेटा 16 साल इंतजारके बाद पैदा हुआ , ऐसी परिस्थिति में बुद्धको उसका जन्म रेशम के सूक्ष्म धागे जैसे स्नेहके बंधनसे बध जाना था लेकिन हुआ उल्टा , वे बंधन मुक्त होकर वैराग्य में पहुँच गए ।
* वक़्त या काल की अपनीं नज़ाकत है ; एक तरफ ख़ुशीके लड्डू रख देता है और दूसरी तरह दिलको गमकी आँसू से भर देता है ,ऐसी स्थिति में जो होता है , वह क्या करे ?
* आये दिन शुभ कामनाएं मिलती रहती हैं जैसे होली ,दशहरा , दीपावली , शिव रात्रि ,बसंत पंचमी ,गुरु पर्व , ईद , बड़ा दिन आदि -आदि । आखिर इतनी सारी शुभ कामनाएं जाती कहाँ हैं , हम तो दिन प्रति दिन घटते ही जा रहे हैं ?
* भारत दुनिया भरके पर्वोंको मनाता है ,जितनें पर्व भारत में मनाये जाए हैं उतनें पर्व संभवतः पृथ्वीके किसी और भागमें नहीं मनाये जाते होंगे लेकिन इन पर्वोंका लोगोंके दिल पर कोई असर नहीं दिखता ।
* पर्वों का मनाना ध्यानका एक माध्यम हुआ करता था पर अब क्षणिक मनोरंजनका साधन बन कर सिकुड़ सा गया है ।
●~~~ ॐ ~~~●

1 comment:

Unknown said...

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