Sunday, July 16, 2023

गीता में अर्जुन का छठवां प्रश्न


प्रश्न – 06

गीता श्लोक : 6.33 - 6.34

अर्जुन कह रहे हैं 

हे मधुसूदन ! शांत मन से प्राप्त समत्व योग की जो बातें आप बताए हैं उसे मैं अपनें मन की चंचलता के कारण समझ नहीं  पा रहा हूं क्योंकि चंचलता मन का स्वभाव है और मन शक्तिशाली भी है । मैं समझता हूँ कि मन को वश में करना वायु को रोकने जैसा है …

प्रभु श्री कृष्णइस संबंध में कह रहे हैं.. 

श्लोक : 6.35 - 6.36 

श्लोकों का भावार्थ 

हे महाबाहो ! निःसंदेह मन चंचल है और कठिनाई से वश में होने वाला है लेकिन अभ्यास - वैराग्य से यह वश में हो जाता है। ऐसे लोग जिनका मन वश में नहीं वे योग दुष्प्राप्य हैं अर्थात उनका योग फलित नहीं होता । यत्नशील पुरुष शीघ्र अपने मन को शांत कर लेते हैं और उनका योग फलित होता है ।

यहां ध्यान में रखना होगा कि चाहे साधना का कोई भी मार्ग क्यों न हो , सबका लक्ष्य मन की शांति है । नोबेल पुरस्कार प्राप्त Max Planck कहते हैं , " Mind is matrix of matters" और भारतीय दर्शन कहते हैं , " संसार मन का विलास है " । मन से भगवान की ओर रुख होता है और मन से ही भोग आसक्ति होती है , अतः मन को समझना ही साधना का लक्ष्य होता है , अब आगे ⬇️

यहां प्रभु द्वारा प्रयोग किये गए शब्द 

अभ्यास -  वैराग्य को समझना होगा ।

महर्षि पतंजलि अपने योग दर्शन के समाधि पाद में चित्त वृत्ति निरोध के लिए 21 सूत्रों में कुछ उपायों को बताए हैं जिनको यहां दिया जा रहा है ⬇️

क्र सं

उपाय

सूत्र

योग

1

अभ्यास - वैराग्य

12 - 19

08

2

ईश्वर प्रणिधानि

23 - 29

07

3

बाह्य कुंभक अभ्यास

34

01

4

सात्त्विक आलंबन एकाग्रता 

35

01

5

ज्योति पर एकाग्रता

36

01

6

बीत राग 

37

01

7+ 8

स्वप्न /निद्रा पर एकाग्रता 

38

01

9

स्वरुचि आधारित सात्त्विक आलंबना पर एकाग्रता 

39

01

योग

21

ऊपर व्यक्त 09 उपायों में पहले उपाय अभ्यास - वैराग्य , शेष उपायों का आधार भी है। अभ्यास - वैराग्य के संबंध में गीता सीधे कुछ नहीं कहता लेकिन इसके संबंध में पतंजलि के निम्न सूत्रों को देखना और समझना चाहिए  ⤵️


पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 12 - 15 अभ्यास - वैराग्य से चित्त वृत्ति निरोध 

 पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 12

 अभ्यास - वैराग्य से चित्त - वृत्ति निरोध होता है ।

यही बात प्रभु श्री कृष्ण गीता श्लोक : 6.35 में कहते हैं , जिसे प्रारंभ में दिया गया है ।

पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 13 

अभ्यास की परिभाषा

चित्त वृत्ति निरोध हेतु जो यत्न किया जाता है , उसे अभ्यास  कहते हैं । 

पतंजलि समाधि पाद सूत्र : 14

वैराग्य कैसे मिलता है ?

लंबे समय तक निरंतर पूर्ण समर्पण - श्रद्धा के साथ किये जाने वाले अष्टांगयोग - अभ्यास से योग की दृढ भूमि मिलती है जो वैराग्य में पहुंचाती है। दृढ़ भूमि का अर्थ है किसी सात्त्विक आलंबन से मन को ऐसे बाधना जिससे देर तक मन उस आलंबन से विचलित न हो । आलंबन से देर तक मन का जुड़े रहना ही पतंजलि के शब्दों में ध्यान कहलाता है जिसकी सिद्धि से समाधि मिलती हैं ।

पतंजलि समाधि पादसूत्र : 15

वैराग्य क्या है ?

इंद्रियों का रुख भोग - विषयों की ओर न होना और हृदय में  विषय - वितृष्णा का भाव जागृत होना ,

 वैराग्य है ।

यहां प्रत्याहार को भी वैराग्य के संदर्भ में देखें जिसे पतंजलि साधन पाद सूत्र - 54 में अष्टांगयोग के पांचवे अंग के रूप में बताया गया है । 

 यहां महर्षि पतंजलि  कह रहे हैं ⤵️

प्रत्याहार > प्रति +आहार

 अर्थात इंद्रियों का रुख अपनें - अपनें  बिषयों की ओर से हट कर  चित्त की ओर हो जाना , प्रत्याहार है । समाधि पाद सूत्र - 15 में जो बात वैराग्य के लिए कही गयी है वही बात साधन पाद सूत्र - 54 में प्रत्याहार के लिए कही जा रही है । ऐसा समझें , प्रत्याहार की सिद्धि ही वैराग्य है । 

विषय - वितृष्णा के भाव का उदय होना , अपर वैराग्य है और अपर वैराग्य में वैराग्य की भूमि का दृढ होना पर वैराग्य है 

पतंजलि  समाधि पाद सूत्र : 16  वैराग्य 

वैराग्य सिद्धि से इंद्रियों में वितृष्णा का भाव , पुरुष

( चित्ताकार  पुरुष ) को स्व बोध कराता है।

अभ्यास - वैराग्य से संबंधित दिए गए संदर्भों का सार निम्न प्रकार है ⬇️

निरंतर बिना किसी रुकावट योगाभ्यास से इंद्रियों में बिषय - वितृष्णा का भाव भरता है  जिससे इन्द्रियाँ धीरे -धीरे अपनें - अपनें विषयों का द्रष्टा बन जाती हैं और उनमें विषय वितृष्णा का भाव जागृत हो जाता है । ऐसा होने से  मन - बुद्धि तीन गुणों के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं , अहँकार श्रद्धा में बदल जाता है और तब ऐसा योगी वैरागी होता है

 वैरागी ज्ञानी होता है जो सबको परम में और परम को सब में हर पल देखता रहता है ।

 यह स्थिति कैवल्य का द्वार होता है जहां से एक कदम आगे मोक्ष होता है । 

~~ ॐ ~~ 

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