Friday, July 7, 2023

गीता में अर्जुन का तीसरा प्रश्न


प्रश्न – 03

श्लोक – 3.36

अथ केन प्रयुक्तः अयं पापं चरति पूरुषः

अनिच्छन् अपि वार्ष्णेय बलात् इव नियोजितः

भावार्थ

हे कृष्ण ! यह मनुष्य बिना इच्छा बलात् लगाए हुए जैसे किससे प्रेरित होकर पाप करता है ?

इस प्रश्न का कोई आधार नहीं दिखता क्योंकि पिछले ओरशन के उत्तर में प्रभु के श्लोक : 3.3 - 3.35

 (33 श्लोक) में कहीं भी पाप शब्द नहीं दिखता । पिछले प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं कि मनुष्य कर्म नहीं करता , उसके अंदर हर पल बदल रहे गुण समीकरण उसे कर्म करने को विवश करते हैं । हो सकता है गीता श्लोक : 3.26 और 3.27 से आकर्षित हो कर अर्जुन इस प्रश्न को उठा रहे हों ।

प्रभु श्री कृष्ण का उत्तर 

श्लोक – 3.37 से 4.3 तक ( 10 श्लोक ) 

अर्जुन के  प्रश्न - 3 के उत्तर रूप में  प्रभु श्री कृष्ण के 10 श्लोकों का सार कुछ निम्न प्रकार है ⬇️

काम के सम्मोहन में ज्ञान, अज्ञान से ढक जाता है और फलस्वरूप वह मनुष्य पाप कर बैठता है अतः पाप से अछूता रहने के लिए काम से अछूता रहना चाहिए । देखिए निम्न श्लोक को ⤵️

काम : एष : क्रोध : एष : रजोगुण समुद्भवः 

महा अशन : महा पाप्मा विद्धि एनं इह वैरिणम् 

गीता - 3.37

भावार्थ 

रजोगुण के तत्त्व काम का रूपांतरण क्रोध हैं । काम भोगने से तृप्त नहीं होता , यह बड़ा पापी है , इसे साधक को अपना वैरी समझना चाहिए ।

अब अर्जुन के प्रश्न के उत्तर के संदर्भ में प्रभु द्वारा दिए गए शेष श्लोक : 3.38 से श्लोक : 4.3 तक का सार यहां एक साथ देखते हैं ⬇️

# काम ज्ञान को अज्ञान से ढक लेता है

# काम अग्नि जैसा होता है जो ज्ञानियों का वैरी है 

# इन्द्रियाँ , मन और बुद्धि काम के वासना स्थल हैं । इनके माध्यम से  ज्ञान को ढक कर देह को मोहित करता है।

# अतः हे अर्जुन ! इंद्रिय निग्रह से तुम काम को नियंत्रित कर ।

#  इंद्रियों को बलवान और सूक्ष्म कहते हैं ; इनसे परे मन है , मन से परे बुद्धि है और बुद्धि से परे आत्मा है अतः आत्मा केंद्रित हो कर इंद्रियों , मन और बुद्धि की पकड़ से परे रहते हुए काम से अछूता राह सकता है क्योंकि काम का सम्मोहन बुद्धि तक सीमित होता है ।

~~ ॐ ~~

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