Thursday, July 20, 2023

गीता में अर्जुन का सातवां प्रश्न



प्रश्न – 07

श्लोक : 6.37 - 6.39 



अर्जुन पूछ रहे हैं ⤵️

हे कृष्ण !

श्रद्धावान लेकिन असंयमी योगाभ्यास में लगे हुए योगी की योग विचलित अवस्था में जब शरीर छूट जाता है तब ऐसा योगी कौन सी गति प्राप्त करता है ? 

 प्रभु श्री कृष्ण का उत्तर 

श्लोक : 6.40 - 6.47 तक + श्लोक : 7.1 - 7.30  [ कुल 38 श्लोक ]

श्रद्धावान - असंयमी असफल योगी दो तरह के हो सकते हैं । एक ऐसे जो वैराग्यावस्था में तो पहुंच जाते हैं पर आगे की साधना पूरी नहीं कर पाते और उनका शरीर छूट जाता है । दूसरे  ऐसे होते हैं जिनकी साधना वैराग्यवस्थ तक भी नहीं पहुंची होती और उनका शरीर छूट जाता है ….

पहले प्रकार के योगी मृत्यु के बाद योगियों के कुल में जन्म लेते हैं और जन्म से वैरागी होते हैं जैसे आदि शंकराचार्य जी । ऐसे योगी वर्तमान जन्म में वैराग्यावस्थ से आगे कैवल्य प्राप्ति के लिए साधना करते रहते हैं ।

दूसरे प्रकार के योगी वे हैं जो वैराग्यवस्था पाने से पहले शरीर छोड़ जाते हैं । ऐसे योगी अपने शुभ कर्मों के फल के रूप में स्वर्ग जा कर ऐश्वर्य भोगों को भोगते हैं और जब उनकी अवधि समाप्त हो जाती है तब श्रीमानों के कुल में जन्म  ले कर पुनः शुरू से साधना प्रारंभ करते हैं ।

यहां यह स्पष्ट हो रहा है कि स्वर्ग भी पृथ्वी की भांति भोग का स्थान है । 

यहां इस संदर्भ में गीता श्लोक : 9.20 - 9.22 को भी देखें जिनका सार निम्न प्रकार है⬇️

तीनों वेदों में सकाम कर्मों को करनेवाले , सोमरस पीनेवाले यज्ञों द्वारा मुझे ( श्री कृष्ण ) पूज कर स्वर्ग की प्राप्ति चाहते

 हैं । ऐसे लोग स्वर्ग की प्राप्ति कर लेते हैं और वहां तबतक अपनें पुण्य कर्मों के फल को भोगते रहते हैं जबतक पूर्ण कर्मों के फल समाप्त नहीं हो जाते । स्वर्ग में वे देवताओं की भांति दिव्य भोगों को भोगते हैं , बाद में वे पुनः मृत्यु लोक को प्राप्त होते हैं ।

 ~~ ॐ ~~  


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