Tuesday, October 17, 2023

सांख्य दर्शन में करण रहस्य


सांख्य दर्शन में 

करण क्या हैं और कितने हैं ?

यहां देखें सांख्य कारिका > 32 और 33

पुरुष - प्रकृति संयोग के बाद विकृत प्रकृति , पुरुष को कैवल्य   में पहुंचाना चाहती हैं और इस कार्य के लिए उसके 23 तत्त्व टूल्स के रूप में पुरुष की मदद करते हैं । 

^^^ ऊपर  की स्लाइड को ध्यान से देखें ^^^


11 इंद्रियां सात्त्विक अहंकार के कार्य हैं अतः ये मूलतः सात्त्विक गुण प्रधान हैं । पांच तन्मात्र तामस अहंकार के कार्य हैं और पांच महाभूतो के करण हैं अतः  मूलतः ये तामस  गुण की वृत्तियों से प्रभावित रहते हैं जैसे आलस्य आदि । बुद्धि त्रिगुणी प्रकृति का कार्य है अतः मूलतः यह तीनों गुणों की वृतियों के प्रभाव में रहती है ।  विकृत प्रकृति का अपनें मूल स्वरूप में लौटने और  चिताकार पुरुष का  अपनें मूल स्वरूप में लौट जाना , महर्षि पतंजलि योग दर्शन का लक्ष्य है । प्रकृति का मूल स्वरूप तीन गुणों की साम्यावस्था है तथा पुरुष का मूल स्वरूप निर्गुण  है।


सांख्य दर्शन , 25 तत्त्वों के माध्यम से जड़ और चेतन सृष्टियों की उत्पात्ति की गणित देता है । इन 25 तत्त्वों में दो सनातन एवं स्वतंत्र तत्त्व हैं जिन्हें पुरुष और प्रकृति कहते हैं । इन दो मूल तत्त्वों के संयोग से विकृत हुई मूल प्रकृति के 23 तत्त्व विकृत हुई प्रकृति के कार्य हैं और प्रकृति उनका कारण है ।

सांख्य के 25 तत्त्व कारण , कार्य , न कारण न कार्य और करण में विभक्त हैं । कारण , कार्य और न कारण , न कार्य तत्त्वों के संबंध में पिछले लेख में बिस्तर के चर्चा की जा चुकी है । अब यहां हम करण तत्त्वों के संबंध में देखने जा रहे हैं।

करण  शब्द का अर्थ हैकर्ता अर्थात करनेवाला या क्रिया का आश्रय।  

पुरुष , प्रकृति एवं विकृत प्रकृति के कार्य रूप में बुद्धि  (महत् ), अहंकार ,11 इंद्रियां , 05 तन्मात्र और तन्मात्रों के कार्य रूप में 05 महाभूत , सांख्य दर्शन के 25 तत्त्व हैं , जैसा ऊपर स्लाइड में दिखाया गया है ।  पुरुष को छोड़ शेष 24 तत्त्व त्रिगुणी तत्त्व हैं और पुरुष निर्गुणी है ।

सांख्य के ऊपर व्यक्त  25 तत्त्वों में बुद्धि ,अहंकार , और 11 इंद्रियों को करण कहते हैं । इन 13 करणों में बुद्धि , अहंकार और मन को अंतः करण एवं चित्त कहते हैं और शेष 10 इंद्रियों को बाह्य करण कहते हैं। चित्त माध्यम से पुरुष करता और भोग एवं भोग से मिलने वाले सुख - दुःख का भोक्ता सा भाषता है ।

13 करणों में बुद्धि मूल प्रकृति का कार्य है और अहँकार का कारण । अहँकार तीन प्रकार के हैं ; सात्त्विक , राजस और तामस । ये तीनिन5 अहँकार बुद्धि के कार्य हैं , सात्त्विक अहँकार बुद्धि का कार्य तथा 11 इंद्रियं का कारण है । तामस अहँकार बुद्धि का कार्य एवं पांच तन्मात्रों का कारण है । पांच तन्मात्र पांच महाभूतों के कारण है । राजस अहँकार बुद्धि का कार्य भर है , किसी तत्त्व का कारण नहीं है , यह शेष दो अहंकारों की मदद करता है । पांच महाभूत  केवल तन्मात्रो के कार्य हैं । 

👌 करण के निम्न तीन कार्य हैं 👇

1 - आहरण (लेना या ग्रहण करना )

2 -  धारण करना 

3 - प्रकाशित करना ( ज्ञान देना ) 

 💮05 कर्म इन्द्रियाँ ग्रहण एवं धारण दोनों करती हैं 

 💮05 ज्ञान इंद्रियाँ केवल प्रकाशित करती हैं । 

💐 इन 05 कर्म इन्द्रियों एवं ज्ञान इन्द्रियों के अपनें - अपनें कार्य हैं  और ये कार्य ऊपर व्यक्त 03 भागों

 (आहरण , धारण और प्रकाशित करना )  में विभक्त 

हैं ।

👉अंतःकरण अर्थात मन , बुद्धि और अहंकार परस्पर एक दूसरे के अभिप्राय से अपनीं - अपनीं वृत्तियों को समझते हैं । 

👉मन , बुद्धि और अहंकार की सभी वृत्तियों का

 पुरुषार्थ ( मोक्ष ) ही उद्देश्य है और करण स्वयं ही प्रवृत्त होते हैं ,किसी से नियंत्रित होकर नहीं प्रवृत्त होते। 

💐 बाह्य करण केवल वर्तमान काल के बिषयों को ग्रहण करते हैं जबकि अंतःकरण ( बुद्धि ,मन और अहंकार ) तीनों कालों के बिषयों को ग्रहण करते हैं ।

🐦 05  कर्म इन्द्रियों में वाक् इन्द्रिय का केवल एक शब्द बिषय है ,शेष 04 कर्म इन्द्रियाँ  , पांच बिषयों ( शब्द , स्पर्श , रूप  , रस , गंध ) वाली है ।

 उदाहरण देखिए 👉 जैसे हाँथ एक घड़े को ग्रहण करता है जिसमें सभीं 05 बिषय हो सकते हैं और पैर सभीं 05 बिषयों से युक्त पृथ्वी पर चलता है । 

💐 13 करणों ( बुद्धि + अहँकार + मन + 10 इंद्रियाँ ) में अंतःकरण ( बुद्धि , अहंकार और मन )  द्वारि (स्वामी ) हैं और अन्य 10 ( 10 इन्द्रियाँ ) द्वार  हैं

 मन - अहंकार से युक्त बुद्धि तीनों कालों के बिषयों का अवगाहन (गहरा चिंतन ) करती है । 

💐 तीनों अंतःकरण स्वेच्छा से अगल - अलग द्वारों 

(10 इन्द्रियों ) से  अलग -अलग बिषय ग्रहण करते हैं ।

💐 सभीं इंद्रियाँ तथा अहंकार दीपक की भांति हैं और एक दूसरे से भिन्न गुण वाले हैं । जैसे दीपक अपनी परिधि में स्थित सभीं बिषयों को प्रकाशित करता है वैसे 12 करण ( 11 इंद्रियां + अहंकार ) सम्पूर्ण पुरुषार्थ 

(धर्म + अर्थ + काम + मोक्ष  ) को प्रकाशित करके बुद्धि को समर्पित करते हैं । 

💐 पुरुष के सभीं उपभोग की व्यवस्था बुद्धि करती है और वही  प्रकृति और पुरुष के सूक्ष्म भेद को विशेष रूप से जानती है ।

 💮 पञ्च महाभूत सात्त्विक गुण के प्रभाव में शांत स्वरूप और सुख स्वरूप में होते हैं ।

🐥 पञ्च महाभूत राजस गुण के प्रभाव में 

घोर ( दुःख ) स्वरुप में होते हैं ।

🐔 पञ्च महाभूत तामस गुण के प्रभाव में मूढ़ भाव स्वरूप में होते हैं ।

【 ध्यान रखना होगा कि तीन गुण पञ्च भूतों के स्वभाव को परिवर्तित करते रहते हैं और ये तीन गुण हमारे देह में हर पल बदल रहे हैं । एक गुण अन्य दो को दबा कर प्रभावी होता है ।

~~ ॐ ~~ 

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