Sunday, October 22, 2023

सांख्य दर्शन का सत्कार्यवाद क्या है ?


सांख्य दर्शन का सत्कार्यवाद 

सांख्य दर्शन में सत्कार्यवाद को कार्य - कारण सिद्धांत भी कहते हैं । यह सिद्धांत सांख्य दर्शन की बुनियाद हैं । जो उत्पन्न करता है , उसे कारण कहते हैं और जो उत्पन्न होता है , वह उस कारण का कार्य कहलाता है

सांख्य दर्शन का सत्कार्यवाद कारिका 09 में व्यक्त किया गया है जो निम्न प्रकार है ⤵️

 कारिका के  07 शब्दों को समझते हैं  ⬇️ 

1 - असदकर्णात् ( असत् + अकरणात् )

 असत् से सत् की उत्पत्ति असंभव है । 

2 -  उपादानग्रहनात् ( उपादान ग्रहण से ) 

 # जिस गुण वाले कार्य की उत्पत्ति चाहिए होती है उसी गुण वाले उपादान कारण को ग्रहण करना चाहिए । कारण दो प्रकार के हैं ; उपादान और निमित्त । मिट्टी के घड़े का निमित्त कारण घड़ा निर्माता होता है और घड़े का उपादान कारण मिट्टी है।

3 - सर्वसंभावाभावत् ( सर्वसम्भव अभावात् ) 

#  किसी वस्तु से सब कुछ उत्पन्न नहीं किया जा सकता जैसे रेत से तेल नहीं निकाला जा सकता।

4 - शक्तस्यशक्यकरणात्  (शक्त के शक्त करण से ) # जो कारण जिस कार्य को उत्पन्न करने में सक्षम होता है , वह उसी को उत्पन्न कर सकता है । अर्थात सामर्थ्यवान कारण , कार्य को उत्पन्न करने में समर्थ होता है जैसे तिल तेल उत्पन्न करने में सक्षम है लेकिन  रेत तेल उत्पन्न करने में सक्षम नहीं है अर्थात एक कारण केवल वही कर सकता है जो उसकी कर सकने की क्षमता  में होता है ।

5 - कारणभावात् ( कारण भाव से )

# कार्य - कारण में अभेद होता है अर्थात दोनों के गुण समान होते हैं । कारण - कार्य एक बस्तु की दो अवस्थाएँ  हैं , पहली अवस्था अव्यक्त और दूसरी अवस्था व्यक्त है अर्थात  कार्य की प्रकृति, कारण जैसी होती है ।

 6 - च का अर्थ और है ।

7 - सत् कार्यम् अर्थात सभी व्यक्त कार्य 

 कार्य ‘सत्’ है अर्थात कार्य अपने कारण में सदा विद्यमान रहता  है। वह जो विद्यमान है उसे सांख्य सत् कहते हैं और जो विद्यमान नहीं उसे असत् कहते हैं ।

अब ऊपर व्यक्त सांख्य कारिका - 09 के आधार पर सरल भाषा में  सत्कार्यवाद के पांच सिद्धान्त को समझते हैं ⤵️

1 - असत् (अविद्यमान ) से सत् (विद्यमान ) की निष्पत्ति असंभव है । 

2 - बिना उपादान कारण  कार्य की उत्पत्ति संभव नहीं ।

3 - किसी एक कारण से अनेक कार्यों की उत्पत्ति संभव नहीं ।

4 - कारण केवल वही कार्य उत्पन्न कर सकता है जो उसकी कर सकने की क्षमता में होता है जैसे तिल ,तेल पैदा कर सकता है , बैगन तिल का तेल नहीं पैदा कर सकता ।

5 - कार्य - कारण दोनों के गुण एक जैसे होते हैं ।

ऊपर व्यक्त 05 सिद्धांतों को निम्न रूप में भी समझा जा सकता है ….

1- अविद्यमान से कार्य की उत्पत्ति असम्भव है ।

2 - जिसका निर्माण करना है उसके उपादान कारण को ग्रहण करना होता है जैसे दही बनाने के लिए दूधको ग्रहण करना ही पड़ता है ।

3 - सब बस्तुए सभीं बस्तुओं से उपलब्ध नहीं होती जैसे रेत से तेल नहीं निकल सकता ।

4 - शक्तिमान ही विशेष कार्य को उत्पन्न कर सकता है ।

5 - कार्य , कारण से भिन्न नहीं होता।

इन सभीं बातों से सिद्ध होता है कि उत्पत्ति से पहले भी कार्य अव्यक्त रूप में अपने कारण में विद्यमान रहता है । 

निम्न सूत्रों पर मनन करें …

1 - उत्पत्ति पूर्व कार्य अपने कारण में छिपा रहता है और इस प्रकार उत्पत्ति पूर्व कार्य सत् है । 

2 - कारण , कार्य की अव्यक्त अवस्था है , और कार्य से उसके कारण को जाना जाता है । 

3 - कार्य , कारण की व्यक्त अवस्था है ।

4 - चूंकि प्रकृति त्रिगुणी है अतः उससे कार्य रूप 23 तत्त्व भी त्रिगुणी ही होते हैं । 

5 - कारण के गुण और स्वभाव उसके कार्य में बीज रूप में होते हैं जो अनुकूल परिस्थिति मिलने पर अंकुरित हो उठते हैं ।

~~ ॐ ~~ 

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