Sunday, October 29, 2023

सांख्य दर्शन में प्रकृति - पुरुष संयोग और संयोग फल

सांख्य दर्शन में कारिका : 3 , 20 , 21 और 22 के आधार पर …

प्रकृति - पुरुष संयोग रहस्य ⬇️

सांख्य दर्शन द्वैत्यवादी दर्शन है जिसमें ब्रह्म , ईश्वर , आत्मा , जीवात्मा और माया जैसे शब्द नहीं हैं । ज्यादा तर सांख्य दर्शन पर लिखने वाले पुरुष को आत्मा मानते हैं जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए । जब सांख्य दर्शन पर चर्चा हो रही हो तब सांख्य के ही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए और जब वेदांत दर्शन की चर्चा हो तब वेदांत दर्शन के शब्दों का प्रयोग होना चाहिए ।

अब ऊपर व्यक्त 04 सांख्य कारिकाओं की यात्रा करते हैं और देखते हैं कि यह प्रकृति - पुरुष संयोग और सर्ग उत्पत्ति के रहस्य की यात्रा कैसी होती है !

💮 प्रकृति - पुरुष संयोग से सर्ग उत्पत्ति होती है । अचेतन , जड़ , निष्क्रिय , सनातन और प्रसवधर्मी तीन गुणों की साम्यावस्था वाली मूल प्रकृति का जब संयोग शुद्ध चेतन , निष्क्रिय और सनातन से होता है तब प्रकृति के तीन गुणों की साम्यावस्था खंडित हो जाती है और तीनों गुण सक्रिय हो उठते हैं । प्रकृति - पुरुष संयोग के फलस्वरूप विकृत हुई प्रकृति से महत् ( बुद्धि ) तत्त्व की निष्पत्ति होती है । बुद्धि से अहंकार , अहंकार से 11 इंद्रियों एवं 05 तन्मात्रो की निष्पत्ति होती है और तनमत्रों से उनके अपने - अपनें महाभूतों की निष्पति होती है । इस प्रकार प्रकृति -पुरुष संयोग से त्रिगुणी 23 तत्त्वों की उत्पत्ति होती है । प्रकृति के 23 तत्त्वों में बुद्धि , अहंकार और मन को चित्त कहते हैं । प्रकृति के इन 23 मूल तत्त्वों से 14 प्रकार की सृष्टियां विकसित होती हैं।

पुरुष प्रकृति को देखने की जिज्ञासा के कारण उससे जुड़ता है और जुड़ते ही वह चित्ताकार हो जाता है अर्थात स्वयं को चित्त समझने लगता है । पुरुष की चेतन ऊर्जा मिलने प्रकृति जब देखती है है कि पुरुष अपनें मूल स्वरूप में अब नहीं रहा अतः उसे उसके मूल स्वरूप में लौटने अर्थात कैवल्य प्राप्ति के लिए उसकी मदद करने लगती है। 

( अगले लेख में सांख्य आधारित 

प्रकृति - पुरुष वियोग रहस्य को देख सकते हैं )

~~ ॐ ~~

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