कितनें प्यारे थे
वे लोग
भारत में गाँवों में कभीं जानें का मौक़ा मिले तो उसे हाँथ से न जानें देना/
वहाँ आप पायेंगे ----
पीपल के पेड़ या नीम के पेड़ के नीचे कुछ अनगढ़ पत्थरों को जिनमें कोई
ब्रह्म होगा,कोई लक्ष्मी,कोई शारदा होंगी तो कोई शिव/
कितनें प्यारे रहे होंगे
वे लोग जिनकी यह खोज है/
किसको अपना बनाएँ ? आखिर कोई तो ऐसा हो जो अपना हो , जिस पर पूरा एतबार हो सके
जो अंदर बह रही आंशू की धार को देख सके और अपनें को समझ सके /
एक अनगढ़ पत्तर का टुकड़ा जिसका न कोई रूप और न कोई रंग , जहां कोई भी आकर्षण नहीं
उसे ब्रह्म रूप में जो पहली बार देखा होगा वह स्वयं ब्रह्म मय रहा होगा /
जब बुद्ध बोले------
परमात्मा है , ऐसा कहना कुछ ठीक न होगा , परमात्मा हो रहा है यदि ऐसे कहें तो कुछ – कुछ
ठीक बात हो सकती है , पर इसका फल क्या हुआ ? लोग उनको नास्तिक बना दिया /
गाँव के जितनें भोले लोग हुआ करते थे , उनकी सोच भी उतनी सीधी होती थी /
एक बार प्रो.आइन्स्टाइन कहे थे …...
प्राचीनतम परम्पराओं में कुछ तो ऐसा जरुर है जिसको मन – बुद्धि से पकड़ना कठीन है और
गीता कहता है … ...
ब्रह्म की अनुभूति मन – बुद्धि से परे की है/
एक अनगढ़ पत्थर का टुकड़ा सही रूप में
ब्रह्म के निराकार स्वरूप को साकार रूप मे दिखाता है//
====ओम======
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