Monday, October 17, 2011

कुछ तो सोचो

कहते हैं-------

पारस अगर लोहे को छू दे तो वह लोहा लोहा नहीं रह जाता , सोना हो जाता है / पारस नाम के बहुत से लोग हैं लेकिन वह पारस पत्थर आज तक किसी को न मिला जो लोहे को सोनें में रूपांतरित कर देता है , आखिर यह बात आयी कहाँ से होगी ?

कहते हैं-----

अन्गुलीमाला एक खूंखार लुटेरा था जो बुद्ध को छूते ही स्वयं योगी बन गया था और एक हैं गीता के अर्जुन जिनको स्वयं प्रभु श्री कृष्ण कह रहे हैं कि मैं प्रभु हूँ , तूं मुझे सार्पित हो जा , तेरा इसी में कल्याण है लेकिन अर्जुन यह भी नहीं कहते कि आप प्रभु नहीं हैं और उनकी शरण में आना भी नहीं चाहते और अर्जुन को समझानें में प्रभु को गीता में 574 श्लोकों को बोलते हैं पर इनका कोई असर अर्जुन पर अंत तक नहीं पड़ता /

एक बात------

पारस लोहे को तो सोना बना देता है लेकिन अगर उसके पास एक टोकरा गोबर रख दिया जाए तो क्या गोबर भी सोना बन जायेगा ? हीं पारस केवल लोहे को सोना बनाता है / लोग कहते हैं , अमुक योगी बहुत प्रभावी है लेकिन मुझे तो कोई असर पड़ा नहीं , मैं कैसे कह दूं कि वह बहुत प्रभावी है ? लोग आये दिन गुर ु बदल रहे हैं कभीं ऋषि राज तो कभीं परमानंद , आये दिन नये - नये धर्म गुरु दिखनें लगे हैं जैसे धर्म गुरुओं की बारिश हो गयी हो / आज आप जहाँ जाएँ , जिस धर्म से जुडी संस्था में जाएँ लंबी - लंबी कतारें लगी हैं लोगों की , लागत है इस पृथ्वी पर अब संभवतः सर्वत्र धर्म ही धर्म है लेकिन क्या ऐसा है भी ? बहुत ही गंभीर बात है कि अब भारत में अमेरिका से धर्म गुरु आ रहे

हैं , लोगों को देसी धर्म गुरु अब नहीं भा रहे , हैं न मजे की बात ?

आप जहां भी दिल आये वहाँ जाएँ लेकिन इतनी सी बात को अपनीं बुद्धि के किसी कार्नर में जरुर रख लें कि ------------------

यह तो पता नहीं की आप जहां जिस गुरु के पास जा रहे हैं वह पारस है या नहीं लेकिन आप यह तो देख ही सकते हैं कि--------------

आप क्या लोहा है या फिर …......

गोबर गणेश हैं//

दूसरों को हम परखना चाहते हैं लेकिन स्वयं को ?



============ओम्===========


1 comment:

Atul Shrivastava said...

बहुत सही बात की।
पहले खुद को परखना चाहिए...
अच्‍छी सीख।