जिससे आप कभीं मिले नहीं
जिसको आप कभीं सुने नहीं
जिसको आप कभीं देखे नहीं
उसकी मात्र फोटो देख कर आप उसे अपना बना लेते हैं या उससे नफरत करनें लग जाते हैं आखिर ऐसा क्यों होता है?आप किसी की तस्बीर देख कर,किसी की मूर्ती देख कर उससे या तो दूर हो जाते हैं या उसे अपना लेते हैं,ऐसा क्यों होता है?क्या कभीं आप इस बिषय पर सोचे हैं?
एक महान मनोवैज्ञानिक का कहना है कि हम किसी को ठीक वैसा समझते हैं जैसा उसे हमारा मन देखता है,मन के पास ऐसा कौन सा साधन है कि वह समझ जाता है कि अमुक अच्छा है और अमुक खराब है?
जब हम किसी की मूर्ती या तस्बीर देखते हैं और इस निर्णय पर पहुँच जाते हैं कि वह ठीक है या खराब;इस रहस्य में बहुत गहरा विज्ञान छिपा है आइये देखते हैं इसे-------
सभीं मूर्तियों एवं तस्बीरों में एक ऊर्जा होती है बिना ऊर्जा कोई भी सूचना नहीं होती और उसकी अपनी ऊर्जा के साथ उसमें बनानें वाले की भी ऊर्जा आ जाती है/जब हम उसे देखते हैं तब-----
हमारे अंदर की ऊर्जा जिसका केंद्र मन होता है उस तस्बीर की ऊर्जा को पकडती है और-----
[क]जब दोनों उर्जायें एक सी होती हैं तब हमारा मन उसे स्वीकार कर लेता है और …...
[ख]जब दोनों की आबृति एवं दिशा भिन्न – भिन्न होती हैं तब हमारे मन की ऊर्जा उसे अस्वीकार कर देती है,इस विज्ञान को टेलीपैथी कहते हैं/प्राचीन काल में इस विज्ञान का बहुत चलन था लेकिन अब लुप्त सा हो चला है//
=====ओम्======
1 comment:
बढिया विषय।
आभार....
Post a Comment