Tuesday, September 17, 2013

सिद्धोकी बस्ती - 1

¢ सिद्धो की बस्ती - ¢ 
" In the oriental conception , there is something that exists beyond the ordinary perception of things which is beyond the minds' reasoning . " 
~~ Einstein ~~ 
°° जो राग-द्वेषसे सम्मोहित हैं , उनके लिए एक संदेह भरी कल्पना है । 
°° जो तत्त्व योगीका बसेरा है । 
°° जो खोजिओं का लक्ष्य है ।
 ● उस सिद्ध लोगोंकी बस्तीकी एक झांकी आपको यहाँ दिखानेंका असफल प्रयास किया जा रहा है , आइये ! ध्यान -मार्गसे चलते हैं उस बस्तीकी ओर :----
 सन्दर्भ : भागवत : 9.12 , 9.22 , 11.15
 <> श्री रामके पुत्र कुशसे आगे 19वें बंसज मरू एवं कौरव -पाण्डव बंशमें शंतनुके बड़े भाई देवापि सिद्ध हैं ,दोनों आज कलाप गाँवमें रह रहे हैं । कहाँ हो सकता है यह कलाप गाँव ? ऐसी सिद्धों की तीन बस्तियाँ हैं जो आज भी रहस्य दर्शियों और खोजिओंके लिए रहस्य हैं - काशी , कूफा और कलाप ।
 ** कलियुगके अंतमें सूर्य -चन्द्र बंशी क्षत्रियोंका बंश जब समाप्त हो जायेगा तब ये दोनों - मरू एवं देवापि क्रमशः सूर्य बंश एवं चन्द्र बंशकी पुनः स्थापना करेंगे ,यह बात भागवतमें है । 
● क्या हैं यह सिद्धियाँ ? 
<> प्रभु श्री कृष्ण अपनी स्वधाम यात्राके समय अपनें मित्र उद्धवको उपदेश देते समय 18 प्रकार की सिद्धियोंको ब्यक्त कियाहै। सिद्धि साधनासे प्राप्त वह आयाम है जहाँ साधक अपनीं इन्द्रियोंसे वह करनें में सक्षम होता है जो एक सामान्य ब्यक्ति के लिए अचम्भा है । 
^^ कौन है सिद्ध ? 
सिद्धि प्राप्त योगी अभेद्य दीवारों , चट्टानों आदि से गुजर सकता
 है , अपनेंको मनकी गति से चला सकता है , अपनीं कल्पना करनें मात्र से बस्तुओंको प्राप्त कर सकता है , स्व इच्छासे अपनें रूप -रंगको बदल सकता है , दृश और अदृश्य दोनों मेंरह सकता है , भोजन ,वायु और पानी बिना रह सकता है और त्रिकाल दर्शी होता है । 
^^ सिद्धि क्या है ? 
 साधनाके पूर्ण होनें पर सिद्धिका आयाम मिलता है । सिद्धि प्राप्तिके बाद जो लोग सिद्धि का प्रयोग ब्यापार की तरह करनें लगते हैं और पुनः नियमित ध्यानको त्याग देते हैं ,वे धीरे -धीरे अपनीं विशुद्ध उर्जा खोनें लगते हैं और पुनः भोग में उतर आते हैं । सिद्धि प्राप्तिके बाद जो सिद्धिका प्रयोग नहीं करते और ध्यानका त्याग भी नहीं करते उनको परम गति मिलती है और वे आवागमन से मुक्त हो जाते हैं । 
<> सिद्ध पुरुष जो परमात्मामें अपना बसेरा बना रखा होता है उसे भोगी नहीं देख सकता। 
● भागवतमें ब्यक्त कलाप गाँव ठीक अल्कूफा गाँव जैसा है जो सिद्ध सूफी संतोंकी बस्ती है और जिसको फ़्रांसिसी खोजी पिछले पांच सौ सालसे खोज रहे हैं । अल कूफा गाँव इरान -ईराक के रेगिस्तान या सऊदी अरबके रेगिस्तानमें कहीं है लेकिन अभीं तक कोई ब्यक्ति ठीक तरहसे इस अदृश्य गाँवको पकड़ नहीं पाया है पर इसके होनें के कई प्रमाण मिल चुके हैं । 
<> बुद्ध मान्यतामें ऐसे सिद्धों को अरहन्त और जैन परम्परामें जिन कहते हैं । जो ध्यानकी उस परम गहराई को छूता है जहाँ से परम पदकी सीमा प्रारम्भ होती है , वह सिद्ध होता है । सिद्ध चाहे तो परम धाम जा सकता है और चाहे तो ध्यानियोंको मार्ग दिखानेंके लिए मृत्यु लोकमें रह सकता है । सिद्ध साकार और निराकार दोनों आकारोंमें भ्रमण करते हैं । 
<> ध्यानका पुजारी जो निर्विकार स्थिति में अपनें भ्रमण कालमें जब सिद्ध क्षेत्रसे गुजरता है तब वह क्षेत्र उसे खीचनें लगता है और उस क्षेत्रसे बाहर वह नहीं होना चाहता। 
 ● जहाँ जाने - अनजानें में पहुचनें पर बाहर की निर्विकार उर्जा नाभि मार्गसे देहमें भरनें लगे और देह रोमांचित हो उठे और ऐसा लगनें लगे कि हमें वह मिल गया है जिसकी हमें तलाश थी , तो वह क्षेत्र सिद्धों का क्षेत्र होता है ।वह जो वहाकं की ऊर्जा की तीब्रता को सहनें नें सक्षम हो कर वहाँ रुक जाता है ,वह उसे पा लेता है जिसके लिए वह कई जन्मों से भाग रहा है । 
● सिद्ध समयातीत होते हैं । सिद्ध भोगीको पहचानते हैं पर भोगी सिद्धको नहीं पहचानता। 
<> इजिप्तमें पिरामिडकी ख़ोज करनें वाले लोगों में कितनें ऐसे हैं जो सत्यको देखते ही आम लोगोंके लिए पागल सा दिखनें लगे क्योंकि वे जो देखे , उसे न औरोंको दिखा सके और न उसे ब्यक्त कर पाए अतः लोग उन्हें पागल की संज्ञा दे दिए । पिरामिडोंके अन्दर जानें पर ऐसे लोग , वैज्ञानिक थे लेकिन अन्दर जानेंके बाद उनकी उर्जा बदल गयी ,वे सत्य को देखनें में सफल हुए पर बाहर आ कर अपनें अनुभूति को ब्यक्त न कर पाए और उनके अपनें ही साथी पागल कहनें लगे। आज तक इस बात पर कोई अनुसंधान नहीं हुआ की आखिर ऐसे लोग क्यों अपनी स्मृति खो दी ? 
* अल्कूफाकी खोज करनें वालों में भी बहुतसे लोग पागल हो चुके हैं , आम लोगोंकी दृष्टिमें लेकिन वे पागल नहीं हैं , उनका मार्ग भर बदल गया है , वे सत्य को समझ गए हैं पर सत्य को ब्यक्त नहीं कर पाए । 
** सत्य भोग केन्द्रितके लिए एक भ्रम है और योगीके लिए भोग एक सहज मार्ग है जो सत्यमे पंहुचा सकता है । 
** भोग की सीमा जहां समाप्त होती है वहांसे ध्यान प्रारम्भ होता
 है । 
** ध्यानमें आँखे बंद होती हैं पर मार्ग स्पष्ट दीखता रहता है । 
** ध्यानके पीठ पीछे भोगका आयाम होता है और भोगकी ग्रेविटी बहुत शक्तिशाली है । 
** ध्यान वह चिराग है जो वह रोशनी देता है जिससे अब्यक्त ब्यक्त हो उठता है । 
** सिद्ध बस्तीमें ऐसा ब्यक्ति जो भोगके आखिरी सीमा पर खड़ा होता है , वहाँ का ऊर्जा क्षेत्र उसके अन्दर की ऊर्जा को रूपांतरित कर देता है और वे अपनें राग -द्वेष एवं अहंकारसे बनी स्मृति को खो कर अपनें मूल स्मृति में पहुँच जाते हैं । 
** ऐसे ब्यक्ति भोग संसार के लिए पागल होते हैं और साधनाके लिए सिद्ध योगी होते हैं। 
 ~~~ ॐ ~~~