Sunday, May 28, 2023

गीता तत्त्वम् भाग - 7


 गीता तत्त्वम् भाग - 7

भारतीय दर्शनों में रहस्यों का रहस्य 

गुण विभाग और कर्म विभाग

द्वारका  का मंदिर      

श्रीमद्भागवत पुराण :11.24 में बताया गया है की ब्रह्म दृश्य - दृष्टा में विभक्त सा भाषता है । दृश्य को त्रिगुणी प्रकृति एवं दृष्टा को पुरुष कहते हैं ।

त्रिगुणी प्रकृति को माया कहा गया है । माया से माया में सभिन दृश्य वर्ग हैं , थे और आगे भी होते रहेंगे । ऋग्वेद का गुण विभाग और कर्म विभाग रहस्य उस जीव कण ( life particle) की ओर इशारा करता है जिसे आज का वैज्ञानिक खोज रहा है । अब आगे गीता के 35 श्लोकों के भावार्थ से गुण अलकेमी को समझते हैं ⬇️


अब इस संदर्भ में पहले गीता के निम्न 08 श्लोकों को समझते हैं ⤵️

7.12 , 7.14 , 7.15 , 13.20 , 18.40 , 14.5 , 14.10 , 13.22


गीता  – 7.12

तीन गुण एवं उनके भाव प्रभु से हैं पर प्रभु में वे भाव एवं उनके गुण नहीं हैं 

गीता  – 7.14

तीन गुणों से माया है , मायामुक्त होना कठिन है 

गीता  – 7.15

माया का गुलाम आसुरी स्वभाव का होता है 

गीता – 13.20

प्रकृति - पुरुष अनादि हैं , विकार प्रकृति से हैं 

गीता  – 18.40

गुणों से अछूता कुछ नहीं सभीं गुण प्रभावित हैं 

गीता  -   14.5

तीन गुण आत्मा को देह में रोक कर रखते हैं 

गीता  – 14.10

तीन गुणों का एक हर पल बदलता समीकरण होता है जो स्वभाव का निर्माण करता है , स्वभाव से कर्म होता है 

गीता – 13.22

देह में स्थित पुरुष परमात्मा ही है । उपद्रष्टा ( साक्षी ) एवं अनुमन्ता ( देनेवाला )/होने के कारण सबका धारण - पोषण करता तथा भोक्ता है । पुरुष महेश्वर एवं परमात्मा है 


अब आगे  निम्न 05 गीता श्लोकों को देखते हैं

3.5, 3.27, 3.33, 14.19, 14.23


🌷तीन गुणों से निर्मित समीकरण से स्वभाव बनता है , स्वभाव से कर्म होता है और कर्ता भाव अहंकार की छाया है /


गुणों के प्रकार एवं लक्षण          

गुण तीन प्रकार के हैं और गुणों के आधार पर श्रद्धा , भोजन , यज्ञ , तपस्या , दान , त्याग , ज्ञान , कर्म , 

कर्म - कर्ता , बुद्धि , धृतिका और सुख सब तीन प्रकार के होते हैं । गीता अध्याय – 17 एवं 18 में यही बात बताई गयी हैं / गीता में प्रभु कहते हैं , कर्म एवं स्वभाव के आधार पर चार प्रकार की वर्ण ब्यवस्था मैंने की है ।

सात्त्विक गुण 


यहां देखिये गीता के निम्न  श्लोकों को   5.13,14.6,14.9,14.11,14.14,18.20,14.16,14.17

सात्त्विक गुण 

गीता  – 5.13

मन से जो साधक कर्म त्याग में उतरता है उसका आत्मा नौ द्वारों के देह में  निर्विकार रहता है / 

गीता  – 14.11

सात्त्विक गुण धारी के देह के नौ द्वार ज्ञान से प्रकाशित होते हैं /

गीता  – 14.6

सत् प्रकाश सात्त्विक गुण से है 

गीता  – 14.9

परम सुख सात्त्विक गुण से मिलता है 

गीता – 14.14

सात्त्विक गुण में मौत में उतरनें वाका उच्च लोकों में पहुँचता है 

गीता  – 18.20

सात्त्विक गुण धारी  सब में एक अब्यय को देखता है 

गीता – 14.16

पुण्य कर्म सात्त्विक गुण से होते हैं 

गीता  – 14.17

सात्त्विक गुण से ज्ञान मिलता है 


राजस गुण 


यहाँ देखिये गीता के इन श्लोकों को > 14.7,14.12,14.15,18.21,14.9,14.16,14.17


गीता  – 14.7

कामना - तृष्णा से राजसगुण पहचाना जाता है 

गीता – 14.12

लोभ – स्पृहा राजस गुण के तत्त्व हैं 

गीता – 14.15

राजस गुण धारी भोगी परिवार में जन्म लेता है 

गीता  – 18.21

सभीं जीवों को जो अलग – अलग देखता है , राजस गुण धारी होता है 

गीता – 14.9

राजस गुण में मनुष्य कर्म का गुलाम बनता है 

गीता  – 14.16

रजोगुण का फल दुःख होता है 

गीता  – 14.17

लोभ राजस गुण का तत्त्व है 


तामस – गुण 


यहां देखिये गीता के निम्न श्लोकों को   14.8,14.13,14.15,18.22,14.9,14.16,14.17


गीता – 14.8

अज्ञान तामस गुण से आता है 

गीता – 14.13

प्रमाद , जड़ता ,मोह तामस गुण की निशानी हैं 

गीता  – 14.15

तामस गुण वाले का अगला जन्म पशु योनी में होता है 

गीता – 18.22

कर्म को छोटा समझ कर उस से दूर रहना तामस  गुण के कारण होता है 

गीता : 14.9

सात्त्विक गुण से सुख की अनुभूति होती है, रजो गुण  कर्म से बाधता हैऔर तमो गुण से अज्ञान का सम्मोहन ज्ञान को ढक लेता है ।

गीता :14.16 -14.17

सात्त्विक का निर्मल फल मिलता है लेकिन राजस गुण में हुए कर्म से दुःख मिलता है तथा राजस हूं में हुए कर्म का फल अज्ञान है ।

सात्त्विक गुण ज्ञान में रखता है , राजस गुण लोभ में रखता है और तामस गुण मोह - प्रमाद में रखता है।


आइन्स्टाइन  जीवन भर उस सूत्र को खोजते रहे जिसके अनुसार यह संसार चल रहा है लेकिन पा न सके जबकि गीता - उपनिषद में उनकी पूरी श्रद्धा थी , हो सकता है गीता अध्याय – 14 में गुण समीकरण उनको न दिखा हो / 

आइन्स्टाइन  कहते हैं , जब मैं गीता पढता हूँ तो मुझे ऐसा प्रतीत होता है की ब्रह्माण्ड विज्ञान जितना स्पष्ट गीता में दिया गया है शायद ही इतनी स्पष्टता कहीं और हो /

जिस दिन विज्ञान गीता के गुण समीकरण पर अपना ध्यान केंद्रित करेगा शायद वह दिन विज्ञान का एक नया दिन होगा // 

गुण विभाग और कर्म विभाग ऋग्वेद का विषय है जिसे गीता में दिया गया है ।

गीता का विज्ञान कहता  है ----

तीन गुणों का एक माध्यम सर्वत्र है जो प्रभु से है और जिसे वेदांत में माया कहते  हैं और सांख्य / पतंजलि योग दर्शनों में जिसे मूल प्रकृति कहते हैं । माया से माया में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड है और ब्रह्माण्ड में नाना प्रकार की सूचनाएं हैं / सभीं सूचनाओं में तीन गुणों की कुछ – कुछ मात्राएँ रहती हैं जो हर पल बदलती रहती हैं / गुणों के आपसी परिवर्तन के कारण मनुष्य कर्म करता  है और कर्म के अनुकूल उसे सुख – दुःख से गुजरना पड़ता है / तीन गुण मनुष्य के देह में आत्मा को रोक कर रखते हैं / 

~~ॐ~~ 

No comments: