Monday, May 16, 2011

कौन खीच रहा है पीछे …....

इस आसरे पर जीवन आगे सरकता रहता है कि जो हम कर रहे हैं उसका

परिणाम ठीक वैसा होगा जैसी हमारी सोच है/धीरे-धीरे हमारा वह कार्य

पूरा हो जाता है लेकिन क्या हमारा अंजादा ठीक निकलता है?क्या हम

उस खुशी को प्राप्त कर पाते हैं जिसकी कल्पना कार्य के प्रारम्भ में की थी?

क्या हमारी तनहाई और गहरी हो जाती है?


कौन देगा इन तमाम प्रश्नों के जबाब?हम करनें वाले हैं,हमें पता है कि हम क्या कर रहे हैं?

हम अंदाजा लगा रहे हैं कि इस कर्म से हमें क्या मिलेगा?लेकिन-------

जब असफलता नज़र आती है तब हम किसी और को उस असफलता के खूंटे से बाध कर हम

स्वयं को बाहर – बाहर से आजाद कर लेते हैं लेकिन हमारे अंदर कोई है जो कोसता रहता है,

यह क्या कर रहे हो?लेकिन हमारा अहंकार अंदर की आवाज को हमारे कानों तक पहुंचनें

नहीं देता/


मनुष्य जीवन भर संग्रह करता रहता है लेकिन जब उसकी श्वास बंद हो जाती है तब उसे घर से बाहर

निकाल कर दरवाजे के ऊपर नीचे जमीन पर लिटा दिया जाता है और इन्तजार किया जाता है

अपनें सभीं सगे-सम्बन्धियों का/जब सब आजाते हैं तब उस देह को उठा कर दाह संस्कार के लिए

ले जाते हैं/क्या कारण है कि लोग सभीं-सगे सम्बन्धियों का इन्तजार करते हैं?

बहुत गहरा कारण है--------

यह वह मौक़ा होता है जब सब यह देख सकते हैं कि उनकी अपनीं-अपनीं औकातें भी

श्वास के साथ जुडी हैं;श्वास निकली और लोग दो कदम पीछे हो लिए/यह परम्परा लोगों को

जगाना चाह्ती है लेकिन हम भी कम नहीं;कौन उस जमीन पर पड़े मुर्दे में स्वयं को देखता है?

कहते हैं …...

बुद्ध दीक्षा देनें के पहले अपनें भिक्षुक को छह माह के लिए स्मशान घाट पर बसाते थे,क्या कारण रहा होगा?कारण सीधा था,जिससे भिक्षुक वहाँ जल रहे मृतकों मीन स्वयं को देख कर

वैराग्यावस्था में आ जाए/संसार के सफर को हम भोग का सफर समझते हैं लेकिन यह सफर

भोग से वैराग्य का होता है;वह जो भोग में समाप्त हो जता है वह सीधे पहुंचता है किसी गर्भ में

और जो भोग को समझ कर योग में पहुंचता है एवं योग में बैराग्य का मजा लेता हुआ अपनें

देह को स्वयं त्यागता है वह सीधे प्रभु में पहुंचता है//


====ओम======







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