प्राणायाम से प्राण
मनुष्य के तीन तल हें ;देह , मन और ह्रदय जो द्वार हैं जहां से परम में प्रवेश मिलता है/
देह से योगाभ्यास किया जाताहै , मन से ध्यान में उतरना होता है और ह्रदय से परम
भक्ति में डूबा जाता है /
पिछले अंक में बताया गया … .....
आत्मा को साधना की दृष्टि से दो रूपों में देखा जाता है;एक आत्म वह है जो परम सत्य है ,
जो प्रभु का अंश है , जो सबके ह्रदय में स्थित है और वहाँ से मनुष्य को उर्जा देता रहता है /
आत्मा का दूसरा स्वरुप वह है जो द्रष्टा नहीं,जो अकर्ता नहीं वल्कि वह आत्मा है जिसके ऊपर
विकारों का कवर चढा हुआ होता है /
मनुष्य के देह में नौ द्वार हैं जिसमें दस प्रकार की श्वासें चलती रहती हैं जिनमें प्राण वायु
एवं अपान वायु प्रमुख है/वह श्वास जिसको हम नाक से अंदर लेते हैं उसे अपां वायु कहते है
और जिस वायु को हम बाहर फेकते हैं उसे प्राण वायु कहते हैं /
प्राण वायु से ज्ञानेन्द्रियों के कर्म नियंत्रित होते हैं /
प्राण वायु और अपान वायुओं को हर समय सम रखना एक सहज योग है
और सभीं योगों का
प्रारम्भ है/
अपान वायु को प्राण वायु में अर्पित करना रेचक योग कहलाता है और …...
दोनों वायुयों को रोक कर समाधि में उतरनें के योग को कुम्भक योग कहते हैं/
// कुछ और बातें अगले अंक में देखें //
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