Wednesday, May 4, 2011


प्राणायाम से प्राण




मनुष्य के तीन तल हें ;देह , मन और ह्रदय जो द्वार हैं जहां से परम में प्रवेश मिलता है/


देह से योगाभ्यास किया जाताहै , मन से ध्यान में उतरना होता है और ह्रदय से परम


भक्ति में डूबा जाता है /




पिछले अंक में बताया गया … .....


आत्मा को साधना की दृष्टि से दो रूपों में देखा जाता है;एक आत्म वह है जो परम सत्य है ,


जो प्रभु का अंश है , जो सबके ह्रदय में स्थित है और वहाँ से मनुष्य को उर्जा देता रहता है /


आत्मा का दूसरा स्वरुप वह है जो द्रष्टा नहीं,जो अकर्ता नहीं वल्कि वह आत्मा है जिसके ऊपर


विकारों का कवर चढा हुआ होता है /




मनुष्य के देह में नौ द्वार हैं जिसमें दस प्रकार की श्वासें चलती रहती हैं जिनमें प्राण वायु


एवं अपान वायु प्रमुख है/वह श्वास जिसको हम नाक से अंदर लेते हैं उसे अपां वायु कहते है


और जिस वायु को हम बाहर फेकते हैं उसे प्राण वायु कहते हैं /


प्राण वायु से ज्ञानेन्द्रियों के कर्म नियंत्रित होते हैं /




प्राण वायु और अपान वायुओं को हर समय सम रखना एक सहज योग है


और सभीं योगों का


प्रारम्भ है/




अपान वायु को प्राण वायु में अर्पित करना रेचक योग कहलाता है और …...


दोनों वायुयों को रोक कर समाधि में उतरनें के योग को कुम्भक योग कहते हैं/


// कुछ और बातें अगले अंक में देखें //






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