किधर चले ?
जब जिंदगी तम में डूबती स्वयं को दिख रही हो …...
दुःख के घनें बादलों से दर्द की बूंदे टपक रहीं हों …...
जब रह – रह कर जिंदगी के आखिरी किनारे कि झलक मिलती हो …..
जब सभीं अपनें पराये बन चुके हों …...
तब …..
एक अब्यक्त भाव की लहर दौड़ती है , ह्रदय में …..
यह लहर आती तो है लेकिन हम बेहोशी में इसे पहचान नहीं पाते ….
जीवन भर जब बेहोशी भरा जीवन गुजरा हो …..
अंत समय में होश आये तो कैसे आये ?
ह्रदय की अब्यक्त भाव की लहर मिला सकती है …..
उस अब्यक्त से
जो परमानंद नाम से जाना जाता है …..
लेकिन ….
इस तम की बेला में ….
होश को पकड़ना पड़ता है //
====ओम======
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