Thursday, May 17, 2012

जीवन दर्शन 50

  • देह की और ब्रहमांड की बनावटें एक सी हैं,वेद कहते हैं

  • देह,ह्रदय में बसे ब्रह्म की तलाश का माध्यम है और ब्रह्माण्ड की तलाश मन की तलाश है

  • ब्रह्माण्ड की रिक्तता में ब्रह्म प्रतिबिंबित होता है

  • मन की रिक्तता में ह्रदय में बसा ब्रह्म दिखता है

  • मन में कभीं दो सूचनाएं एक साथ नहीं रह सकती

  • मन कभीं स्वयं के संबंधमें नहीं विचार करता

  • मन जिस घडी स्व पर केंद्रित हो जाता है वह घडी रूपांतरण की घडी होती है

  • वह जो इस घडी को चूक गया , चूक गया और जो पकड़ लिया वह पार गया

  • भोग और भगवान एक साथ एक मन में नहीं बस सकते

  • लेकिन भोग के प्रति उठा होश प्रभु से परिपूर्ण कर देता है

  • मन को बाहर से अंदर की दिशा देना ही ध्यान है

  • जब मन बाहर न भाग कर अंदर रमता है तब वैराज्ञ आगमन होता है

  • वैराज्ञ निर्वाण का द्वार है

  • निर्वाण प्राप्ति ही परम गति है

  • परम गति का अर्थ है आवागमन स मुक्त हो कर प्रभु में समा जाना

=====ओम्======



2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
लिंक आपका है यहीं, मगर आपको खोजना पड़ेगा!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!

#vpsinghrajput said...

ब्लाग पर आना सार्थक हुआ । काबिलेतारीफ़ है प्रस्तुति । बहुत सुन्दर बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्‍तुति
हम आपका स्वागत करते है....
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