Friday, November 8, 2013

ध्यानकी किरण - 1

●ध्यानकी किरण - 1 ●
1- भक्त वह है जो आत्मा - परमात्माके एकत्वकी अनुभूतिसे गुजरा हो।
2- अहंकार आपको क्षणिक शांतिका भ्रम देता है पर वह एक अनूठा जहर होता है जो जला कर भष्म करदेता है ।
3- लेनेंका भाव दुःख उर्जाकी पहचान है जिसमें अहंकार छिपा हो सकता है और देनेंका भाव परिधि पर अकड़े हुए अहंकारकी छाया भी हो सकती है । 4- देनेंके भाव से यदि दुःख मिलता हो तो वह भाव निर्मल नहीं , गुण प्रभावित होता है हो नर्कमें पहुंचाता है ।
5- देना और लेना एक उर्जाकी दो तस्बीरें हैं।
6- भाव दुःखके धनी होते हैं जिनके सुखमें दुःखके बीज विकसित होते रहते हैं ।
7 - परिस्थियाँ बदलनेंका यत्न न करो , उनमें रहनेंका अभ्यास करो , यह आपको सुखी होनें में सहयोग करेगा।परिस्थिति जिसमें आप हैं वह आप द्वारा ही निर्मित है , दूसरों पर दोशार्पण क्यों करते हो ?
8 - लोगोंको धोखा देकर वहाँ तक पहुँच तो सकते हो लेकिन जहाँ किसी को धोखा देकर पहुँचना चाह रहे हो वह तुमको चैन से रहने न देगा ?
9 - दूसरोंको बदलनें में स्वयं को बर्बाद न करो , स्वयंसे जो हुआ उसके परिणाम को देखते हुए स्वयं को बदलते रहना ही भोग संसार में चैन की किरण दिखा सकता है ।
10 - आज संसार जिस रंगमें रंग रहा है उसे कोई नहीं बदल सकता , कालके चक्रकी गति को कौन बदल सकता है ? संसारके बदल रहे रंगमें अपनें को न उलझाओ , उसका द्रष्टा बनानें का अभ्यास करो । ~~~ ॐ ~~~

No comments: