मेरी नज़र में - 1
1- कर लो इकठ्ठा जितना चाहो लेकिन साथ ही साथ यह न भूलना कि अंतमें खाली हाँथ ही जाना होगा ।
2- मनुष्य योनि स्वयंमें एक तीर्थ है और हर मनुष्य तीर्थंकर , तीर्थंकर अहंकार - गुण अप्रभावित ब्रह्मवित् होता है , यह सोच बना कर जीना स्वयंसे मिला देता है ।
3- कामना - अहंकार रहित जीवन परम अनुभवका द्वार है ।
4- जीवनको जीनें वाला लाखोंमें एक हो सकता है लेकिन अन्य सभीं जीवनको पीठ पर ढोनें वाले हैं । 5- गहरी कामना अहंकारकी छाया है ।
6- मोह तामस अहंकारकी पहचान है ।
7- लोभ असंतोष की झलक है ।
8- मेरा और तेरा का भाव फैलनें नहीं देता और बिना फैले प्रकृति से एकत्व स्थापित नहीं हो सकता । 9- प्रकृतिसे एकत्व स्थापिर होते ही प्रभुकी खुशबू मिलने लगती है ।
10- साधनाकी डगर है बहुत कठिन लेकिन इस डगर की यात्राके लिए ही तो मनुष्य योनि मिली हुयी है । ~~~ ॐ ~~~
Saturday, November 16, 2013
ध्यान सूत्र
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