●● एक सोच - 1 ●●
1- सत्य भोगीके लिए एक भ्रम है और भोग उनके लिए परम सत्य है ।
2- योगीके लिए सत्य उनका बसेरा है और भोग सत्यका द्वार ।
3- भोगी भोगकी सुरक्षा हेतु भ्रमित मनसे सत्यको देखता है , और काम उसका परम सत्य है ।
4- प्रकृतिमें मनुष्यको छोड़ कर अन्य सभीं जीवोंका केंद्र भोग है पर मनुष्यके जीवनके दो केंद्र हैं ( bipolar life ) - एक भोग और दूसरा योग ।
5 - गणितमें अंडाकार आकृति जिसे इलिप्स कहते
हैं , उसके दो केंद्र होते हैं ।
6 - मनुष्य जब भोगकी ओर कदम उठता है तब उसे योग अपनी ओर आकर्षित करता है और जब योग में होता है तब उसे भोग खीचता है ।इस प्रकार मनुष्य कभी संतुष्ट नही हो पाता ।
7 - अपनें अनुकुल औरोंको बदलनें की सोच दुःखके सिवाय और क्या दिया ? लेकिन स्वयंको बदलनेंका अभ्यास ध्यान प्रक्रिया है जो परम से जोडती है ।
8 - संसारकी सोच आपको सिकोड़ती चली जाती है और प्रभुकी सोच आपको फैलाती रहती है । पहली स्थिति में दुःखकी और दूसरी स्थितिमें आनंदकी उर्जा तन-मन में भरती है ।
9 - जैसे हो वह आपका अपना अर्जित किया हुआ
है , जहाँ लोगो केलिए आप सुखी दिखते हैं और अपनें लिए दुखी रहते हैं पर यदि आप स्वयंको अपनें कृत्यों में देखनें का अभ्यास करें तो एक दिन आप अन्दर - बाहर से सुखी ही सुखी होंगे ।
10 - भोगकी यात्रामें जब हम दो कदम चल लेते हैं और देखते हैं अपनीं स्थितिको तो पहली जगहसे चार कदम अपनेंको पीछे पाते हैं लेकिन योगी योग की यात्रामें पीछे मुड़ कर देखता ही नहीं और जहाँ भी होता है जैसे भी होता है , खुश रहता है ।
11- अपनेंको दूसरोंकी तुलनामें देखनेंका अभ्यास आपको अपनेंसे दूर करता जाता है।
~~~ ॐ ~~~
Sunday, November 24, 2013
एक सोच
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