● मूर्ति से ●
1- दर्पणके सामनें खड़े हो कर सभीं अपनेंको अभिनेता समझते हैं , कुछ क्षण केलिए लेकिन कभीं किसी मंदिरकी मूर्तिके सामनें खड़े हो कर आप अपनें को आँखें बंद करके देखना , वहाँ आपको अपना असली चेहरा दिखेगा और आप बेचैन होनें लगेंगे । 2- एक वह है जो सबकुछ होते हुए भी अतृप्त है और एक वह है कुछ न होनें पर भी आनन्दित है ।
3- भक्त सबकुछ खोकर उसे पा लेता है और आनंदित रहता है और भोगी सबकुछ होते हुए भी उसकी ओर पीठ किये मुह लटकाए जीता है ।
4- सभीं उसके द्वार तक पहुँचते हैं लेकिन हजारों साल गुजर जानें के बाद कोई एक ऐसा मिलता है जो द्वार खुलनेंका इन्तजार करता है।
5-जितनें द्वार खुलनें का इन्तजार करते होते हैं उनमें कोई एक - दो ऐसे होते हैं जो द्वारमें प्रवेश कर पाते हैं अन्यको माया अपनी ओर खीच लेती है , पीछे ।
6- मंदिरके दरवाजे तक पहुँचना , अति सरल तो नहीं पर सुगम जरुर है लेकिन पूर्तिके सामनें खड़ा रहना इतना सरल नहीं , मूर्तिवत होना अपनें बशमें नहीं और जो मूर्तिवत हो गया , वह उसका हो गया । 7- ध्यानसे हृदय- कपाट खुलता है ।
8- हृदयमें परम बसता है ।
9- हृदय -कपाट खुलते ही वह उर्जा जो अन्दरसे बाहर बह रही थी थम जाती है और बाहरसे परम उर्जा अन्दरकी और आती स्पष्ट रूपसे दिखने लगती है ।
10- जब यह उर्जा नाभिसे हृदयमें पहुँचती है तब वह ध्यानी अब्यक्त से जुड़ जाता है और अब्यक्त हो उठता है ।
~~ ॐ ~~
Friday, November 29, 2013
मूर्ति से
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