● दर्द और रिश्ता ●
1- प्रतिदिन दर्द और रिश्ताके अनुभवसे हम गुजरते हैं लेकिन दर्द इए रिश्ता को समझनें की कोशिश हम नहीं करते ।
2- दर्दमें रिश्ते और रिश्तेमें दर्द दोनों का अनुभव एक दुसरे से थीक उल्टा होता है , दर्द में रिश्तेकी तलाशमें मन होता है और रिश्ते में दर्दका अनुभव वैराग्य की ओर चलता है ।
3- दर्दसे रिश्ता है ? या रिश्तेसे दर्द है ? बहुत कठिन है इस समीकरणको समझना ।
4- दर्दमें जो रिश्ता बनता है वह परम रिश्ता होता है जैसे माँ और औलादका रिश्ता जो प्रसव पीड़ासे सम्बंधित रिश्ता है लेकिन अब यह रिश्ता भी कमजोर होता दिख रहा है क्योंकि अब शिशुका जन्म बिना प्रसव पीड़ा संभव है ।
5- भक्त और भगवानके मध्य दर्दका रिश्ता है जहां भक्त रोता - रोता नाचनें भी लगता है जैसे मीरा और परमहंस श्री परमहंस जी ।
6- भक्तिमें उठी दर्द जब भक्तके हृदयको पिघलाती है तब उसके तरल हृदयमें भगवान दिखता है और तब उसका सम्बन्ध संसारसे टूट जाता है और वह शुद्ध परा भक्तिकी समाधिमें पहुँच कर प्रभु ही बन जाता है । 7- रिश्ते में जो दर्द उठता है वह दो प्रकारका होता
है ; एक वह दर्द जो जुदाईके कारण उठता है और दूसरा दर्द कृतिम दर्द होता है जो बुद्धि - अहंकारके सहयोगसे उठता है । जुदाई का दर्द प्राकृतिक दर्द होता है जिसके तार हृदय से जुड़े होते हैं लेकिन कृतिम दर्द बुद्धि एवं अहंकार की उपज है ।
8- प्राकृतिक दर्द हृदय का दर्द है और कृतिम दर्द अहंकारकी उपज है । अहंकारका दर्द नर्क में पहुंचता है और प्राकृतिक दर्दमें परमकी खुशबू मिलती रहती
है ।
~~ ॐ ~~
Monday, November 25, 2013
दर्द और रिश्ता
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