गुरुवर श्री रामकृष्ण परम हंसके एक मारवाणी मित्र मिलनें आये और गुरुवर से काशी - यात्रा की अनुमति मांगी / गुरुवर बोले , क्या बात है , काशी की याद एकदम कैसे आ गयी ? मित्र बोले , गुरूजी काशी गए दो साल हो गए हैं और इन दो सालों में मुझसे काफी पाप हुए होंगे , मैं सोच रहा हूँ की क्यों न काशी - गंगा स्नान करके पाप मुक्त हो जाऊं ? गुरुवर बोले , बात तो सही है लेकिन तुमको एक राज की बात बताता हूँ / तुम तो काशी जाते ही रहते हो और जब भी जाते हो गंगा स्नान भी करते हो लेकिन क्या तुमनें कभीं गंगा किनारे खड़े पेड़ों को देखा है ? सेठजी बोले , पेड़ों को ! मैं समझा नहीं आप क्या कहना चाहते हैं , कृपया साफ़ – साफ़ बताएं ? गुरुवर कहते हैं … ...
जब कोई गंगा में डूबकी लेता है तब उसके सारे पाप उसके सर से निकल कर उन पेड़ों पर लटक जाते हैं और जब उस का सर पानी से ऊपर उठता है तब पुनः उसके सारे पाप उसके सर में प्रवेश कर जाते हैं और परिणाम स्वरुप वह जैसा गया होता है वैसा ही वापिस आ जाता हैलेकिन ------
हजारों लोगों में कोई एकाध ऐसा भी होता है जो ….....
स्नान करते समय होश में रहता है और जब उसके सारे पाप पेड़ों पर लटक जाते है तब वह अपनें देह के सबहीं द्वारों को बंद कर के अपनें सर को गंगा से बाहर निकालता है /
अब तुम बताओ , तुम क्या करके वापिस आना चाहते हो ?
जाओ , प्यार से जाओ और एक बार गंगा स्नान करके हमेशा के लिए अपनें सबहीं द्वारों को बंद कर लो और तब तुम परम आनंद में रहनें लगोगे //
गीता में प्रभु श्री कृष्ण भी यही बात कहते हैं //
===== ओम =====
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