चलते फिरते कभीं-कभीं ऐसा भी करें------
किसी मंदिर के एक किनारे में बैठ कर शांत होनें की कोशीश करें / मंदिर एक ऎसी जगह है जिसका आविष्कार हुआ ही है मन शांत करनें केलिए और मन शांत करनें का एक परम पवित्र स्थान मंदिर ही है / जब आप मंदिर के किसी किनारे में बैठे हों तब आप दो काम एक साथ करें ; पहला काम आप अपनें मन के साथ बनें रहें और मन जहां जहां जाता हो उसे वहाँ वहाँ से उठा कर अपनें साथ रखें / दूसरा काम आप का होना चाहिए उन लोगों को देखते रहना जो लोग मंदिर में प्रवेश कर रहे हों /
जब आप लोगों को देखनें का काम कर रहे हों तब आप के मन में उन लोगों के प्रति कोई विचार नहीं उठनें चाहिए / जब आप मंदिर से बाहर निकलें तब जिन लोगों को आप देखे हों उनमें से दो एक को चुन लें और सोचें , उनके बारे में की -------
क्या जिनको आप मंदिर के अंदर देखे थे वे वही हैं जिनको आप वर्षों से जानते हैं?
लोगों मंदिर में आते ही ऐसे क्यों हो जाते हैं जैसे अभीं-अभीं गंगा में स्वयं को रूपांतरित करके आये हों/क्या मंदिर लोगों को रूपांतरित कर देता है?यदि ऐसा होता तो लोग मंदिर से बाहर कदम रखते ही पुनः क्यों अपनें मूल रूपमें आ जाते हैं?
=====ओम=====
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