● रे मन ●
1- मन मनुष्यको दैत्य और देव बनाता है ।
2- सात्त्विक अहंकार और काल ( समय ) से सृष्टिके प्रारम्भमें मनका निर्माण होता है ।
3- अपरा प्रकृतिके 08 तत्त्वों ( पञ्च महाभूत + मन + बुद्धि + अहंकार ) में से एक मन है ।
4- मन जब 10 इन्द्रियों से जुड़ता है जब विकारों का पुंज हो जाता है ।
5- मन , चित्त , बुद्धि और अहंकारके योग को अन्तः करण कहते हैं ।
6- जैसे एक समझदार ब्याध पकडे गए हिरन पर भरोषा नहीं रखता वैसे योगी अपनें मन पर भरोषा नहीं रखता ।
7- मन को राजस - तामस गुणों की बृत्तियों से दूर रखना , ध्यान है ।
8- मन पूर्व अनुभव में आये बिषयों पर भौरे की तरह मडराता रहता है ।
9- कर्म संस्कारोंका पुंज , मन है ।
10- मन संसार का विलास है ।
11- 10 इन्द्रियाँ ,मन और स्थूल देह को साधक लिंग शरीर कहते हैं ।
12- Sir Wilder Penfield
( 1891 - 1979 ), a recognised nurologist says : Mind is not brain , it works independent of brain as a computer programmer.
13- Roger Wolcot Sperry
( 1913-1994 ) : Nobel prize 1982 : Nurologist : He says , body doesnot create biochemical and nurological brain nechanism , it is developed before the development of the body . 14 - John C. Accles ( 1903-1997) : nobel prize : 1963 says : Consciousness is extra cerebral located in the area where orthodox brahmins keek crest , this area is called S.M.A. area ( supplement motor area ).
15 - Max Planck -nobel prize 1918 says : Mind is matrix of matters .
~~ ॐ ~~
Friday, November 1, 2013
मन को समझो
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1 comment:
उम्दा प्रस्तुति |
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