रामू काका ......
बुढापे में बचपन के दोस्तों की याद खूब आती है -----
मैं भी चल पडा अपनें बचपन के दोस्त से मिलनें काशी के पास के एक गाँव में ।
गाँव क्या अब तो वह एक कस्बा हो गया है , जहां कभी झोपड़ियां हुआ करती थी आज वहाँ तीन - तीन मंजिली इमारतें खडी हैं । अपनें दोस्त को खोजनें में काफी परेसानी तो हुयी लेकीन गाँव के बाहर एक बरगद के पेड़ के नीचे बैठ मिल गए मेरे बचपन के दोस्त जिनको आज गाँव के लोग रामू काका के नाम से बुलाते हैं ।
रामू काका काफी उदास दिख रहे थे , मैं तो उनके बचपन के संबोधन से बुलाया और वे चौक पड़े और खड़े हो कर देखनें लगे की यह कौन हो सकता है , लेकीन पहचान न पाए क्यों की लगभग तीस साल के बाद हम दोनों मिले थे , पहचानते भी कैसे ?
खैर मैं अपना परिचय दिया और वे गले लग कर रोने लगे । मैं भी बैठ गया उनके साथ और धीरे - धीरे बचपन से आज तक की बातें होने लगी । मैं पूछ बैठा -- कालू भाई क्या बात आप उदास काफी दिख रहे हो ?
पहले वे तो चुप रहे लेकीन देर तक चुप न रह सके और बोल उठे .......
क्या बताऊ यार ! एक मोबाइल हाँथ से गिर कर टूट गया और मेरे बेटे की बहू हजार बातें सूना डाली , अब तुम तो जानते ही हो ,मेरे स्वभाव को , मैं उठा और यहाँ आ कर बैठ गया हूँ । क्या कहूं और कैसे कहूं , अब समझ में आया की बुढापा क्या चीज होती है ? मैं पूछ बैठा - काफी कीमती रहा होगा ? वे बोले , क्या ख़ाक कीमती था , रहा होगा हजार रुपये का , वह भी पांच साल पुराना था ।
मैं कालू को अच्छी तरह से जानता हूँ ,
वह आज से लगभग तीस साल पहले मुल्क से बाहर काम करता था
और उस जबानें में अपनें बेटे के लिए दो - दो हजार रुपयों से भी कीमती
खिलौनों को ले आया करता था , उसी बेटे के लिए
जिसकी पत्नी आज मोबाइल खराब होने पर डाट मारी थी ।
वक़्त कहाँ से कहाँ तक की सैर कराता है ॥
क्या आज कल नयी पीढी के लोगों में
कुछ अलग किस्म की ऊर्जा बहनें लगी है या ,
क्या ? बुजुर्गों का स्वभाव बदल रहा है ?
===== ॐ =====
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