Saturday, April 7, 2012

जीवन दर्शन - 38

जिस सागर में रहते हो उसे पहचानो
स्वयं की पहचान ही सागर से मिलाती है
संसार सागर में तीन प्रमुख लहनें उठती रहती हैं [ सात्त्विक , राजस एवं तामस गुणों की ]
अध्यात्म की आसक्ति सात्त्विक लहर की उप लहर है
आसक्ति,कामना,क्रोध एवं लोभ राजस लहर की उप लहरें हैं
मोह,आलस्य एवं भय तामस लहर की उप लहरे हैं
ऊपर बतायी गयी लहरों एवं उप लहरों का बोध ही स्व का बोध है
स्व के बोध में बिषय,इंद्रिय,मन,बुद्धि,चेतना एवं आत्मा परमात्मा का द्रष्टा बनना होता है
स्व का बोध वह द्रष्टा भाव है जिसमें प्रकृति-पुरुष का रहस्य छिपा है
संसार का रहस्य ही माया रहस्य है
माया एक पर्दा है जो मन-बुद्धि को परम सत्य के दूर रखता है
परम सत्य सर्वत्र है एवं जो हैं उनका आदि मध्य एवं अंत भी वही है
गुणों का बोध अपरा भक्ति से संभव है
अपरा भक्ति का आखिरी द्वार परा भक्ति का प्रवेश – द्वार है
परा भक्त परम सत्य से परम सत्य में बसा हुआ प्रकृति-पुरुष का द्रष्टा होता है

=====ओम्======

1 comment:

रविकर said...

बढ़िया प्रस्तुति ||

सादर ||