कैवल्य पाद सूत्र : 01
जन्म + औषधि + मंत्र + तप: + समाधिजा: सिद्धयः
“ जन्म , औषधि , मंत्र , तप और समाधि से सिद्धियाँ मिलती हैं “
स्वप्न , मंत्र , हथात् , कृपा और नित्य , ये पांच प्रकार के सिद्ध होते हैं। परमहंस जी के सूत्र में जन्म के लिए नित्य शब्द प्रयोग किए हैं । मंत्र शब्द पतंजलि एवं परमहंस जी , दोनो ऋषि प्रयोग किए हैं । तप के लिए परमहंस जी हथात् शब्द प्रयोग किए हैं और कृपा , गुरु कृपा के लिए परमहंस जी प्रयोग कर रहे हैं जहां गुरु शक्तिपात से अपनें ऊर्जा शिष्य में स्थानांतरित करके सिद्ध बना सकते हैं । परमहंस स्वप्न माध्यम से भी सिद्धि प्राप्ति की बात कर रहे हैं जहां इष्ट गुरु अर्थात पिछले जन्मों के गुरु स्वप्न ने आ कर सिद्ध देते हैं ।
ऊपर कैवल्य पाद सूत्र - 01 में महर्षि पतंजलि कह रहे हैं , समाधि सिद्धि होने पर सिद्धियां मिलती हैं , इस सूत्रांश को समझना होगा । विभूति पाद सूत्र : 4 में महर्षि पतंजलि कहते हैं - त्रयं एकत्र संयम: अर्थात जब धारणा , ध्यान और संप्रज्ञात समाधि एकत्र हो जाए ( एक साथ घटित होने लगें ) तब इस स्थिति को संयम कहते हैं ।
पतंजलि विभूति पाद सूत्र : 16 - 49 ( 34 सूत्रों ) में संयम सिद्धि से 45 प्रकार की सिद्धियां प्राप्त करने की विधियों को बताया गया है । पतंजलि योगसूत्र दर्शन में विभूति पाद तीसरा पाद है और कैवल्य पाद चौथा पाद है ।
विभूति पाद के अंत और कैवल्य पाद के प्रारंभ का एक ही विषय है - सिद्धि प्राप्ति ।
यहां ध्यान रखना होगा कि योग साधना का प्रारंभ तो है लेकिन इसका कोई अंत नहीं , योग यात्रा ,अनंत की यात्रा है जो भोग से प्रारंभ हो कर योग में उतर हर वैराग्य माध्यम से कैवल्य में लीन हो जाती है ।
~~ ॐ ~~
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