पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र : 09
पिछले जन्म के संस्कार
जाति देश काल व्यवहितानाम प्यानन्तर्यम् स्मृतिसंस्कारयो:
जाति , देश और काल का व्यवधान होने पर भी स्मृति एवं संस्कार में एक रूपता होने के कारण कोई व्यवधान नहीं होता ।
अर्थात
अगला जन्म चाहे जिस योनि में हो , जिस जगह हो और जिस काल में हो पर पिछले जन्म की स्मृति और संस्कार में कोई परिवर्तन नहीं आता ।
सनातन , अचेतन और तीन गुणों की साम्यावस्था वाले जड़ प्रकृति तत्त्व तथा सनातन ,चेतन , निर्गुणी और स्थिर पुरुष संयोग से हम हैं। पुरुष तत्त्व प्रकृति तत्त्व को समझने के लिए उससे संयोग करता है । संयोग के फल स्वरूप प्रकृति की त्रिगुणी साम्यावस्था विकृत हो उठती हैं और प्रकृति कार्य रूप में उत्पन्न 23 तत्त्वों में बुद्धि , अहंकार और मन के समूह को चित्त कहते हैं । । चित्त केंद्रित होते ही अकरता पुरुष करता जैसा व्यवहार करने लगता है और प्रकृति को समझना चाहता है । पुरुष , प्रकृति को समझते ही अपने मूल स्वरूप में आ जाता है और उस योगी को दूसरा जन्म नहीं मिलता वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है । यहां ध्यान रखना होगा कि पुरुष का पुनर्जन्म नहीं होता , प्रकृति आवागमन करती है , चित्त केंद्रित पुरुष को कैवल्य दिलाने हेतु ।
~~ॐ ~~
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