पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 13,14
( सभीं धर्म परिवर्तनशील एवं त्रिगुणी होते है )
कैवल्यपाद सूत्र - 13 (धर्म त्रिगुणी होते हैं )
धर्म चाहे व्यक्त हो या सूक्ष्म , सभीं धर्म त्रिगुणी होते हैं ।
इस सूत्र में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक सा है कि धर्म त्रिगुणी क्यों होते है ? अतः इस संदेह के संदर्भ में कैवल्यपाद का अगला सूत्र : 14 को भी देखना होगा ..
कैवल्यपाद सूत्र - 14
परिणामैकत्वाव्दस्तु तत्त्वम्
“ परिणाम एक होने से वस्तु तत्त्व एक होता है “
अब ऊपर व्यक्त दोनों सूत्रों के भावार्थ को एक साथ देखते हैं ⤵️
प्रकृति त्रिगुणी है अतः प्रकृति निर्मित वस्तु त्रिगुणी ही होगी । गुणों के आधार पर कारण और कार्य एक समान होते हैं । संसार में जो भी था , जो भी है और आगे जो भी होने वाला है , वे सब ' पुरुष ' और ' प्रकृति ' , दो तत्त्वों के संयोग से थे , हैं और आगे भी होते रहेंगे ।
पुरुष और प्रकृति दोनों तत्त्व सनातन है और एक दूसरे के विपरीत गुणों वाले हैं । पुरुष शुद्ध चेतन तत्त्व है और प्रकृति
(मूल प्रकृति) तीन गुणों की साम्यावस्था को कहते हैं और वह जड़ तत्त्व होते हुए प्रसवधर्मी भी है । पुरुष ऊर्जा से प्रकृति की त्रिगुणी साम्यावस्था विकृत हो उठती है जिसके फलस्वरूप प्रकृति - पुरुष से उत्पन्न 23 तत्त्वों एवं प्रकृति - पुरुष से 14 प्रकार की सृष्टियों की निष्पति हुई है जिनमें एक मनुष्य भी है । प्रकृति एवं प्रकृति के कार्य रूप में उसके 23 तत्त्व त्रिगुणी एवं जड़ है और इन सभी के अपने - अपने त्रिगुणी धर्म भी होते हैं । गुणों का धर्म है हर पल बदलते रहना अतः इनसे निर्मित तत्त्वों के धर्म भी बदलते रहते होंगे क्योंकि हर कार्य में उसका कारण उपस्थित होता है अर्थात कार्य और कारण , दोनों का एक धर्म होता है।
संसार में व्यक्त सूचनाओं में मनुष्य एक मात्र ऐसा है जिसमें गुणातीत होने की संभावना होती है। योगाभ्यास के निरंतर अभ्यास के फलस्वरूप , कैवल्य है जिसमें पुरुषार्थ शून्य हो गया होता है और वह योगी गुणातीत होता है । गीता अध्याय - 14 में अर्जुन गुणातीत योगी के लक्षणों को जानने की जिज्ञासा भी दिखाते हैं । कैवल्य पाद के आखिरी सूत्रों में कैवल्य की बात बताई गई हैं , जिन्हें हम आगे चल कर देखेंगे।
~~ ॐ ~~
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