सूत्र 6
[ ध्यान से चित्त रिक्त होता है ]
तत्र + ध्यानजम् + अनाशयम्
ध्यानसे निर्मित चित्त अनाशय होता है । आशय का का अर्थ संग्रह भूमि और अनाशय का अर्थ रिक्त है। चित्त को कर्माशाय भी कहते हैं । चित्त में कर्मों के फल बीज रूप में एकत्रित होते रहते हैं जिनमे से कुछ वर्तमान में भोगे जा रहे होते हैं और कुछ अगले जन्म में भोगे जाते हैं ।
बुद्धि , अहंकार और मन समूह को पतंजलि एवं सांख्य दर्शन चित्त या अंतःकरण कहते हैं । ये तीन जड़ त्रिगुणी तत्त्व पुरुष ऊर्जा के प्रभाव में एक दूसरे के अभिप्राय को समझते हुए अपनें - अपनें कार्यों को करते रहते हैं ।
कैवल्य पाद सूत्र - 06 का भावार्थ
ध्यान से निर्मित चित्त कर्म वासनाओं , क्लेशों आदि से रिक्त रहता है । क्लेश क्या है ? देखें निम्न सूत्रों को …
∆ क्लेशमूलः कर्माशयो दृष्ट अदृष्ट जन्मवेदनीय:
(साधन पाद सूत्र : 12)
क्लेष , कर्माशय ( चित्त ) की मूल हैं जहां दृष्ट (वर्तमान जन्म ) और अदृष्ट ( भविष्य अर्थात अगले जन्म ) में भोगे जाने वाले कर्म फल संचित होते हैं ।
∆ जबतक क्लेष निर्मूल नही होते , सुख - दुख मिलते रहते हैं और ऐसी स्थिति में आवागमन से मुक्ति नहीं मिल पाती .. (साधन पाद सूत्र : 13 +14)
∆ अविद्या ,अस्मिता , राग , द्वेष और अभिनिवेष , पांच प्रकार के क्लेश हैं ( साधनपाद सूत्र : 3 ) ।
ध्यान की दृढ़ भूमि समाधि का द्वार खोलती है और समाधि सिद्धि से विवेक ज्ञान की धारा बहने लगती है जिससे सत्य - असत्य तथा नित्य - अनित्य स्पष्ट रूप से दिखने लगते हैं ।
ध्यान (meditation) अर्थात देर तक चित्त का किसी सात्त्विक आलंबन के साथ जुड़ा रहना अर्थात चित्त एकाग्रता की सिद्धि मिलने पर चित्त रिक्त रहने लगता है और बुद्धि , अहंकार और मन में केवल सात्त्विक वृत्तियों का ही आवागमन रहता है ।
ध्यान साधना सिद्धि , संप्रज्ञात समाधि का द्वार खोलती है ।
~~ ॐ ~~
No comments:
Post a Comment