पतंजलिवकैवल्य पाद सूत्र : 15
चित्तानुसार वस्तु दिखती हैं
“ वस्तु साम्ये चित्त भेदात् तयोः विभक्तः पंथा: “
वस्तु एक होती है पर चित्त भेद के कारण अलग - अलग दिखती है
अर्थात वस्तु चित्तानुसार दिखती है ।
सूत्र की गंभीरता को विस्तार से समझते हैं ..
एक विषय पर लोगों की सोच अलग - अलग होती है , ऐसा क्यों ? क्योंकि सबके चित्त अलग - अलग होते हैं और चित्त भेद के कारण वस्तु एक होते हुए भी अलग - अलग दिखती है ।
अपने दैनिक सांसारिक जीवन में पतंजलि के इस सूत्र की झलक मिलती तो रहती है लेकिन हम समझने की कोशिश नहीं करते । दो लोग जब एक विषय पर विचारों का आदान - प्रदान कर रहे होते हैं तब उनमें मत भेद स्पष्ट दिखता है ; कुछ के मत एक से होते हैं और कुछ के भिन्न होते हैं।
मूलतः चित्त ( बुद्धि , अहंकार और मन का समूह ) जड़ और त्रिगुणी हैं अतः उसे स्वयं का पता नहीं होता के वह कौन है, फिर विषय के बारे में क्या जान सकता हैं । लेकिन शक्छ चेतन पुरुष की संगति चित्त विषय धारण करता है । चित्त त्रिगुणी प्रकृति का कार्य है और हर पल बदलते रहना गुणोंका धर्म है । गुणों में हो रहे बदलाव , कर्म होने का कारण है । गुण और कर्म के इस संबंध को वेद गुण विभाग एवं कर्म विभाग कहते हैं ।
जब दो लोग एक विषय पर विचार कर रहे होते हैं तब उस काल में उन दोनों के चित्तो के गुण समीकरण अगर एक जैसा हुआ , तो दोनों में मत भेद नहीं होगा अन्यथा , मत भेद होगा ही । ऐसी परिस्थिति में तत्त्व ज्ञानी विषय पर बहस नहीं करता ।
महर्षि पतंजलि कैवल्यपाद सूत्र - 15 में कह रहे हैं …
मत भेद चित्त भेद के कारण होता है अतः इस सत्य को समझते हुए तत्त्व ज्ञानी समभाव में रहते हैं । मूढ़ की बातों से तत्त्व ज्ञानी विचलित नहीं होते और अपनी सोच को मनवाना भी नहीं चाहते।
बुद्ध पुरुषों में मत भेद नहीं होता ।
~~ ॐ ~~
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