Saturday, October 19, 2024

पतंजलि कैवल्य पाद सूत्र 12 वासनाओं का धर्म बदलता रहता है


कैवल्य पाद सूत्र :12 

अतीतानागतम्  स्वरूपतः अस्त्यध्वभेदात्  धर्माणाम् ।

 अतीत-अनागतम् - स्वरूपतः अस्ति-अध्व-भेदात्-धर्माणाम् 

सूत्र के शब्दों के अर्थ …

अतीत >  भूतकाल अनागतम् > भविष्यकाल 

स्वरूपत: >  पदार्थ या वस्तुएँ अपनें स्वरूप में  

अस्ति > है अध्व > काल भेदात् > भेद या अन्तर से धर्माणाम् > धर्मों का

कैवल्य पाद सूत्र : 12 का भावार्थ 

कैवल्य पाद सूत्र : 7,8,10 ,और सूत्र 11,कर्म एवं कर्म वासनाओं से संबंधित थे , जिनमें सूत्र - 10 में बताया गया कि मनुष्य कभी यह नहीं सोचता कि उसका जीवन सीमित है,उसकी इस सोच के कारण उसकी कर्म वासनाएं अनादि हैं ।  अब सूत्र 12 में महर्षि पतंजलि कह रहे हैं…

वासनाएं कभीं भी नष्ट नहीं होती , भूत में थी , वर्तमान में हैं और भविष्य में भी रहेंगी लेकिन काल भेद के कारण , उनके धर्म में परिवर्तन आता रहता है । अब यहां वासनाओं के धर्म को समझना होगा । इंद्रिय , मन , बुद्धि , अहंकार , तन्मात्र और महाभूत आदि सभी तत्त्वों के अपने - अपने धर्म होते हैं । धर्म शब्द धारणा से बना हुआ है जिसकी परिभाषा पतंजलि विभूति पाद सूत्र - 1 में कुछ निम्न प्रकार से दी गई है 🔽

<> देश बंध: चित्तस्य , धारणा <>

अर्थात चित्त को किसी आलंबन से बांधना, धारणा है । किसी तत्त्व का धर्म वह होता है जिससे वह बधा हुआ होता है अर्थात उसका वह अपरिवर्तनीय गुण जो उसे चलाता है , उसका धर्म होता है । यहां इस संदर्भ में विभूति पाद सूत्र - 14 को भी देखना चाहिए जो निम्न प्रकार है 🔽

शांतोदिताव्यपदेश्यधर्मानुपाती धर्मी 

शांत + उदित + अव्यपदेश + अनुपाती + धर्मी 

सूत्र शब्दार्थ 

 शांत (भूत काल )  , उदित (वर्तमान काल ) , अव्यपदेश्य (जिसके बारे में न कहा जा सके अर्थात भविष्य काल )धर्म अनुपाती , धर्मी  ।

सूत्र भावार्थ 

 धर्म के लिए धर्मी चाहिए जैसे शक्ति के लिए शक्तिमान चाहिए। भूत ,वर्तमान और भविष्य में जो रहता हो वह धर्मी है और तीन काल ( भूत , वर्तमान और भविष्य ) धर्म हैं । पतंजलि योग दर्शन की बुनियाद सांख्य दर्शन है , इसलिए यहाँ सांख्य के सत्कार्य बाद को अपनाया गया है । सत्कार्य बाद अर्थात कारण - कार्य बाद  बिना धर्मी ,धर्म की कोई सत्ता नहीं और बिना कारण किसी कार्य की कोई सत्ता नहीं होती ।हर कार्य में कारण विद्यमान रहता है ।

~~ ॐ ~~

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