जब यह संसार किसी को पराया समझनें लगे .....
जब अपने पराये से लगते हों ......
जब सभी सहारे टूटते दीखते हों ......
जब सभी राह कांटो भरी दिखती हों .....
तब वह ब्यक्ति क्या करता है ?
या तो वह खुदकशी करके अपनें को समाप्त कर देता है या ....
बैरागी के कपडे डाल कर काशी - प्रयाग में भीख माँगता है ।
क्या बैरागी के कपड़ों को अपनानें से वह बैरागी हो पाता है ? जी नहीं .....
भागा हुआ ब्यक्ति कभी भी चैन से नहीं रह पाता , ज़रा इस बात पर
जिस से भागोगे प्यारे वह आप का पीछा करता ही रहेगा , चाहे वह हिमालय हो या अपना घर ।
अब आगे -------
सुख का जहां अंत होता है , क्या वहाँ से दुःख का प्रारम्भ नहीं होता ?
दुःख का जहां अंत होता है क्या वहाँ से सुख का प्रारम्भ नहीं होता ?
अब सोचिये ज़रा -------
जहां सुख - दुःख मिलते हैं अर्थात वह रेखा जो सुख- दुःख को अलग करती करती है , वह क्या है ?
वह क्या .........
गीता का सम भाव ॥
गीता का सम भाव वह है .......
जहां से एक ओर प्रभु का आयाम होता है और ----
दूसरी ओर भोग संसार का .....
वह ब्यक्ति जो चला था वह संसार की ओर तो अपना रुख अब कर नहीं सकता ,
उसका रुख जरुर हुआ होगा प्रभु की ओर , और यदि ......
वह आत्म ह्त्या किया होगा तो वह .......
निहायत कमजोर ब्यक्ति रहा होगा ॥
==== जय हो =====
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