Sunday, September 26, 2010

उसके हाँथ में सूखी रोटी का एक टुकड़ा भर था .....

बस्ती के बाहर कुछ दूरी पर एक झोपड़े के सामनें भारी भीड़ और कारों का काफिला देख
मुझसे रहा न गया ।
मैं चल पडा उस ओर और वहाँ पहुँच कर पूछा , एक सज्जन से - यह सुबह - सुबह भीड़ ?

बात क्या है ?
उस सज्जन ने उत्तर दिया - बात है नहीं हो गई है । आप एकी बाबा को जानते हैं ,

मैं बोला , हूँ , कुछ - कुछ ।
मुझे उत्तर मिला , बाबा आज न रहे , उनके भक्त मुंबई , कोलकता एवं दूर - दूर से आ रहे हैं ,

सुन रहे हैं की चार
बजे उनको अंतिम क्रिया के लिए ले जाना है ।

मैं भी जानना चाहता था की यह बाबा कौन था , और लोगों की बातों को सुनता रहा ।

जो लोगों को महल दिए ,
जो लोगों को औलाद दिए , जो लोगों को कारोबार दिए , जो लोगों के लिए अपनें को

अर्पित कर रक्खा था ,
आज वह इस संसार में न रहा और उसके भक्त उसको आखिरी श्रद्धा अर्पित करनें के लिए

यहाँ आ रहेहैं , देखते हैं आगे क्या होता है ?
चार बजते ही बाबा के शव को बाहर निकाला गया । बाबा अपनें झोपड़े में जमीं पर ही सोते थे ।
बाबा का शव एक फटे कम्बल में लिपटा था , लोग उनके शव को कम्बल से निकाला और

यह देख कर
सभी रोने लगे की ........
वह बाबा जो लोगों को महल दिए थे ......
वह बाबा जो लोगों को सुख - आराम के लिए आशिर्बाद दिए थे ........
आज उनके हाँथ में .......
सूखी रोटी का एक टुकड़ा पाया गया ,

लगता है बाबा इस टूकड़े को कई दिनों से आज के लिए रख रक्खा था ।
बाबा का चेहरा ऐसा दिख रहा था जैसे बाबा हस्नें ही वाले हो और देखनें से ऐसा नहीं लगता था

की बाबा अब नहीं रहे ॥
लोगों के लिए जो जीते हैं ........
लोगों के लिए जो श्वासें भरते हैं ....
उनसे दूर परमात्मा नहीं रहता ॥
धन्य हैं ऐसे लोग जो ऐसे निर्विकार संतों की छाया तले कुछ वक्त गुजरा हो ।
ऐसा मौक़ा अनेक जन्मों के बाद मिलता है

और
ऐसे संत सदियों बाद आते हैं ॥

==== जय हो =======

No comments: