Tuesday, September 28, 2010

ऎसी बात कौन कह सकता है ?


मैं , लगता है कुछ भ्रम में था ........
अपना झोपड़ा एक कदम पहले बना लिया था ......
लेकीन अब ------
उसमें ही बसेरा करूंगा , जिस में सभी जाते हैं [ मौत ] ....
आप सोचना की ऐसी बात कौन कह सकता है ?

बाबा कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे , उनके प्रेमी लोग उनकी खूब सेवा किया ।
बाबा चलते - चलते बोले -- आप सब को कैसे धन्यबाद करूँ , आप लोग तो मेरे लिए
निराकार प्रभु के साकार रूप हैं , मैं तो आप सब का धन्यबाद ही कर सकता हूँ , और मेरे हाँथ में
है भी क्या ?

उसनें अच्छी सीख दिया , जो कुछ मैं का अंश बचा था , वह सब उसनें निकाल दिया ,
ऐसा लगता है , अब पता चला की
मैं भ्रम में था और जिस जगह अपना झोपड़ा बना रखा था , वह जगह एक कदम पीछे थी ,
उस के आश्रम से जहां सभी को जाना ही पड़ता है चाहे होश में या बेहोशी में ,
यहाँ यही एक सत्य दिखता है ।
जन्म , जीवन और मृत्यु - तीन अवस्थाएं हैं जिनके होश के माध्यम से प्रभु में पहुंचना संभव है ।
जन्म का तो पता न चला , जीवन लगता है भ्रम में कहीं खो गया अब तो मृत्यु ही शेष है जिसके
माध्यम से प्रभु को जाना जा सकता है , और यदि यह मौक़ा भी हाँथ से निकल गया तो समझो
लम्बी यात्रा से गुजरना होगा ॥

अब तो अपना झोपड़ा एक कदम आगे सरकाना पड़ेगा जिस से उसके माध्यम से अपनें को भुला कर
प्रभु की हवा में रहा जा सके ॥
मौत प्रभु का प्रसाद है , जो सम भाव से सब को मिलता है चाहे कोई
चाहे या न चाहे ॥

==== जय हो =====


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