Thursday, February 9, 2012

गीता के मूल मन्त्र

गीता तत्त्वों को हम यहाँ गीता ममें देखनें का प्रयाश कर रहे हैं जिसके अंतर्गत पुरुष , परमात्मा एवं ब्रह्म शब्दों को गीता में देखनें का यह हमारा प्रयाश अब अगल्ले सोपान पर पहुँच रहा है , आइये देखते हैं गीता के माध्यम से प्रभु श्री कृष्ण के वचनों को ------

श्लोक – 2.16

नासतो विद्यते भावो

नाभावो विद्यते सतः

श्लोक – 4.7 – 4.8

अधर्म जब धर्म को ढक लेता है , साधू पुरुषों का पृथ्वी पर रहना जब कठिन हो उठत है तब तब प्रभु निराकार से साकार रूप धारण करते हैं /

श्लोक – 13.20

प्रकृति- पुरुष अनादि हैं

श्लोक – 15.16

क्षर – अक् षर [ देह + आत्मा ] दो पुरुष हैं

श्लोक – 15.18

क्षर – अक्षर से परे मैं हूँ [ श्री कृष्ण ]

श्लोक – 3.5 , 3.27 , 3.33 , 18.59 , 18.60

मनुष्य तीन गुणों के प्रभाव में आ कर कर्म करता है और कर्ता भाव का आना अहंकार का सूचक है /

श्लोक – 13.25

क्षेत्रज्ञ की अनुभूति ध्यान से एवं सांख्य – योग से हो सकती है /

==== ओम्========


1 comment:

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर सटीक प्रस्तुति। धन्यवाद।