दो से संसार का अस्तित्व है
एक सर्वत्र है स्थिर है और अब्यय है
दूसरा जो पहले से है अस्थिर है और परिवर्तन का संकेत है
दूसरा पहले के फैलाव स्वरुप है और और संकेत देता है कि वह किसी से है
वह एक अनेक में बिभक्त सा दिखता है
अनेकान्तबादी जहां पहुंचते हैं वह अनेक नहीं एक है
उस एक को अनेक रूपों में देखनें वाले परिधि पर होते हैं
सबमें उस एक को जो देखते हैं उनकी यात्रा परिधी से केंद्र की ओर की होती है
परिधि से केंद्र की यात्रा है गीता की यात्रा
गीता की यात्रा में माया के माध्यम से पुरुष को निहारना होता है
====ओम्======
3 comments:
गहरा संदेश।
जो मिल र्व्ह्व हवी वह मिला ही हुआ है मात्र हमारा ध्यान उस से हटा हुआ सा दिखता है /
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति। धन्यवाद।
Post a Comment