Thursday, February 2, 2012

दो से एक

दो से संसार का अस्तित्व है

एक सर्वत्र है स्थिर है और अब्यय है

दूसरा जो पहले से है अस्थिर है और परिवर्तन का संकेत है

दूसरा पहले के फैलाव स्वरुप है और और संकेत देता है कि वह किसी से है

वह एक अनेक में बिभक्त सा दिखता है

अनेकान्तबादी जहां पहुंचते हैं वह अनेक नहीं एक है

उस एक को अनेक रूपों में देखनें वाले परिधि पर होते हैं

सबमें उस एक को जो देखते हैं उनकी यात्रा परिधी से केंद्र की ओर की होती है

परिधि से केंद्र की यात्रा है गीता की यात्रा

गीता की यात्रा में माया के माध्यम से पुरुष को निहारना होता है

====ओम्======




3 comments:

Atul Shrivastava said...

गहरा संदेश।

J Sharma said...

जो मिल र्व्ह्व हवी वह मिला ही हुआ है मात्र हमारा ध्यान उस से हटा हुआ सा दिखता है /

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति। धन्यवाद।