Friday, December 17, 2010

चलो आज इस पर सोचते हैं



आज वैज्ञानिक नयी पृथ्वी की तलाश में अंतरिक्ष में भटक रहे हैं ,
बहुत परेशान से हैं बिचारे ,
आखिर ऎसी नौबत क्यों आ गयी ?
पृथ्वी को कौन समाप्त कर रहा है ?
क्या पशु ?
क्या पेड़ और पौधे ?
क्या नभ चर ?
या फिर ....
नदियाँ - पहाड़ आदि ॥
पृथ्वी को बरबाद विज्ञान के नाम पर और अपनें अहंकार को और पैना
करनें में हम इंसान कर रहे हैं और रोजाना और इसे
खोखला बनाते चले जा रहे हैं ॥
आज विज्ञान की उम्र क्या है ?
बीसवीं शताब्दी के मध्य से विज्ञान की रफ़्तार तेज हुयी है और इस रफ़्तार में जो बरबाद हो रही है ,
वह है पृथ्वी ॥
आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक पृथ्वी की आवाज को पकडनें में कामयाब हो गए हैं ।
आज से लगभग
ढाई हजार साल पहले जब विज्ञान दर्शन शास्त्र की गर्भ में एक
कण के रूपमें समय का इन्तजार में
सुसुप्ता अवस्था में पडा था , उस समय एक महान दार्शनिक
जिनको आज गणितज्ञ भी कहते हैं और जिनका नाम था Pythagorus ,
उनकी यह सोच थी की सभी ग्रहों की अपनी - अपनी धुनें होती हैं और ढाई हजार साल
वैज्ञानिकों को लग गए अपनी माँ - पृथ्वी माँ की आवाज सुननें में ॥
हमें वह दिन दूर नहीं दिखता जिस दिन कोई भारतीय मूल का अमेरिकन
वैज्ञानिक पृथ्वी की सिसक - सिसक कर
रोने की भी आवाज को पकडनें में कायाब हो जाए ॥
मेरे प्यारों -----
अपनी ही नहीं .....
सभी जीवों ----
सभी बनास्पतियों ....
सभी सूचनाओं की माँ
जो सब को एक भाव से अपनें सीनें से लगा रखी है ,
उसकी सिसकन को भी समझो और .....
अपनें सुख - सुबिधा में अंधे हो कर , उसे समाप्त न करो ॥

चलते फिरते -----
उठते बैठते ........
कभीं - कभी ......
प्रभु निर्मित प्रकृति में भी .....
झांका करो ....
बड़ा सकूं भरा पडा है ॥
आज इतना ही

==== कोई सुने या न सुनें , मैं सुनता हूँ ======

1 comment:

श्याम जुनेजा said...

सुन रहे हैं आपको भी सुन रहे हैं .. चिंता मत करिये पृथ्वी बहुत बड़ी है आदमी तो बस यूं ही खुजलाहट है पृथ्वी के जिस्म पर !
यह वर्ड वेरीफिकेशन क्या इसे दूर किया जा सकता है ?