Thursday, October 14, 2010

उस दर्द को कौन सुना होगा ?


गाँव के बाहर ठीक उस मोड़ पर जहां से सडक घुमती है , गाँव की ओर ,
एक झोपड़ी है जिसकी हालत
बता रही है की उस में रहनें वाला या रहनें वाली कैसे होंगे / कैसी होगी ।

उस झोपड़ी में एक लगभग 80 वर्ष की महिला रहती हैं जिनको कई दिनों से
कोई देखा न था ।
चुनाव का आलम है , सडक पर आनें - जानें वालों की कोई कमी नहीं ,
लोग पान का पीच उस झोपड़े पर
थूकते तो हैं लेकीन कोई नहीं देखता की इस टूटे - फूटे गंजे झोपड़े में कोई रहता भी है ।

मध्य रात्री में जब आवागमन रुक सा जाता है , सन्नाटा छा जाता है
तब उस झोपड़े से
एक दर्द भरी अति धीमी
आवाज निकलती तो है , लेकीन उस आवाज को वहाँ कौन
सुननें वाला है ?
यह कराह उस औरत की है जो उस गाँव की एक इतिहास की
किताब सी है ।
पांच दिन हो गए होंगे , उस बुजुर्ग
महिला को कोई देखा भी न था की वह कहाँ है ? आज से

पच्चास साल पहले
उसी झोपड़े में एक उसका
बेटा भी रहता था जो बड़ा हो कर फ़ौज में भर्ती हो गया था ।
कश्मीर में उग्रबादियों से संघर्ष करते हुए एक दिन
वह वतन के लिए शहीद हो गया था , उस दिन से आज तक उसकी माँ
उस झोपड़े में
अपनें बेटे की याद में
सिसक रही है और आंशू टपका रही है ,
लेकीन .....
क्या कोई उसकी सिसकन को सुना होगा ?

===== यह भी एक जीवन है =========

6 comments:

Sarita said...

सुंदर अभिव्यक्ति.
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.हिंदी ब्लागिंग को आप नई ऊंचाई तक पहुंचाएं, यही कामना है....
-
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Anita kumar said...

उस माँ का दर्द हम समझते हैं।

Patali-The-Village said...

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति. आभार.

Dr.Dayaram Aalok said...

sentimental post.thanx!

Anonymous said...

देश पर कुर्वान होने वाले अमर शहीद की माँ की दयनीय स्थिति को उजागर करती तथा अंतर्मन को झकझोरती सच्ची पोस्ट.

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपने बहुमूल्य विचार व्यक्त करने का कष्ट करें