Friday, October 22, 2010

ऐसा क्यों होता है ?


जब आप पूजा में बैठे हो तब देखना --------

[क] पंडितजी क्यों इतनी जल्दी में हैं ,
क्यों राजधानी गाड़ी की तरह मन्त्रों को भगा रहे हैं ?
[ख] फिर अपनें को देखना --------
क्यों वहाँ - वहाँ खुजली होती है जहां - जहां पहले कभी नहीं हुयी होती ?
[ग] बात - बात पर गुस्सा क्यों आता रहता है जब तक पूजा चल रहा होता है ?
घर में जब कभी कोई धार्मिक कार्य क्रम चाल चल रहा होता है , तब घर के लोगों में
अस्थिरता देखी जाती है , क्यों ?
जहां धार्मिक अनुष्ठान हो रहा होता है ,
वहाँ मन कहता है , भाग लो , यह जगह तेरे लिए उचित नहीं ।
मन भोग की ओर चलाना चाहता है , मन गुणों का गुलाम है , धार्मिक अनुष्ठान प्रभु की ओर
चलाते हैं । मन कभी मरना नहीं चाहता ,
प्रभु के मार्ग पर चलनें वाले का मन पूर्ण शांत रहता है ।
मन को रस है राग में , भय में , क्रोध में , मोह में
जहां उसका साथी होता है - अहंकार ।
गुण , मन और अहंकार - ये तीन तत्त्व ..........
मनुष्य को पशु बना कर रखते हैं ॥
मन जिधर चलाये ठीक उसके बिपरीत चलो ,
यही मन साधना है ॥

===== मन के साथ रहो =======

1 comment:

vandana gupta said...

शाश्वत सत्य कहा है……………अगर ये मन बन्ध जाये तो शांत रस का समावेश ना हो जाये और ज़िन्दगी की हर उलझन सुलझ जाये।